Saturday, August 24, 2013

रंग

रंग
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मेरी उपस्थिति जगह-जगह
हरे या केसरिया रंगों में
दर्ज की गयी ;

सभाओं में ,
बैठकों में ,
सम्मेलनों में ,
पूजा स्थलों पर
और दंगों में !

मेरा वजूद
तोलते रहे
जनगणनाओं के पृष्ठ;
आजन्म मेरे वर्ण से
और
तथाकथित रूप से उभर आये
मेरे त्वचा के रंगों से !

मेरे शुभचिंतक
परिभाषित करते रहे
मेरे व्यक्तित्व को
मेरे सौंदर्य को
सर्वदा;
बस मेरे आँखों के रंगों से !

विवश मैं
कशमकश में खड़ा हूँ,
अपने आप को समेटे
कोशिश में ;
खुद को खुरच खुरच कर
रंगहीन बनाने की !

घृणा है मुझे रंगों से
और
रंगों से उपजी परिभाषाओं से !



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