Tuesday, November 5, 2013

मिट्टी के पुतले

मिट्टी के पुतले
-----------------

मिट्टी के पुतले
रंग-रोगन किये
हरे, लाल, नीले
कुछ काले -उजले !

कुछ कच्चे-पक्के
कुछ हक्के-बक्के
कुछ अहर्निश मांगे
हक़ से, बक के;
कुछ अमृत पीते
भरसक छक के !

मिट्टी के पुतले…।

कुछ टेढ़े कुछ चिकने 
लगे हाथों हाथ बिकने 
समय के तंदूर पर 
झट से लगे सिकने ;
पल भर में उनके लगे 
असली रंग दिखने !

मिट्टी के पुतले…।  

कुछ अपनो से हारे
कुछ सपनो के सहारे
कुछ धरातल से ऊपर
फिरे मारे मारे ;
कुछ चित पर हैं काबिज
वो सबको निहारे !

मिट्टी के पुतले…।

कुछ रक्त से सने
कुछ वक़्त से ठने
कुछ सख्त हैं बने
कुछ त्यक्त, अनमने ;
कुछ अक्खड़ चबाते
बस लोहे के चने !

मिट्टी के पुतले…।

कुछ नम्र, कुछ ढीठ
कुछ दिखा रहे हैं पीठ
कुछ जुबान से पैदल
कुछ आजन्म बिना रीढ़;
कुछ बसे मधुशाला 
कुछ बसे धर्मपीठ !

मिट्टी के पुतले…।

कुछ भावो से रिसते
कुछ घावों से रिसते 
कुछ थोड़े में पाते ज्यादा
कुछ हर पल हैं घिसते ;
कुछ जन्म से हैं राजा
कुछ सदियों से पिसते!

मिट्टी के पुतले…।



Thursday, October 10, 2013

भ्रम की चादर

तुम लड़ कर बढे
या
बढ़ कर लड़े ;
लड़े तो तुम थे
और यही सत्य है !
तुम भिड़ कर हटे
या
हट कर भिड़े;
भिड़े तो तुम थे
और यही तथ्य है !
तुम गिर कर संभले
या
संभल कर गिरे ;
गिरे तो तुम थे
और यही सत्य है !
भ्रम की चादर
ओढोगे
कब तक मित्र ?

वार्तालाप

अरसे बाद
अपने आप से बात की;
अरे हाँ.....,
उम्‍मीद भी साथ थी!
कहा,
कहाँ खो गये हो?
गहरी नीँद मेँ सो रहे हो?
पहले तो लपक कर,
तारे तोड़ लाते थे;
कभी भटके घाट को
नदी तक छोड़ आते थे!

काल्पनिक वास्तविकता
और वास्तविक कल्पना
के बीच का अंतर
तुम्हें ख़ूब था पता ;
गाहे बिगाहे चाहे
बोलते नहीं थे अलबत्ता ।

अब कहाँ गुम हो?
क्‍या यह वही "तुम" हो?
.....................
.....................
कोलाहल युक्‍त शांति,
यथार्थ या भ्रांति?
पीड़ा दर्दविहीन
तीव्र? क्षीण?
थोपा हुआ अंतर्द्‍वँद?
तेज.... मंद?
.....................
.....................
मैँ ने विदा ली।
उम्मीद नहीँ साथ थी!

Saturday, August 24, 2013

लकीरें हथेली पर

लकीरें हथेली पर
--------------------

हथेली की लकीरों पर,
चलते रहोगे उम्र भर
बड़े सधक चालक हो.…  !

वो लकीरें,
जो खिंची हुई है जन्म से
तुम्हारी हथेली पर;
और
शायद बिलकुल स्थिर है;
या बदलती है अपनी जगह
सूई की नोक भर से भी कम
बिना तुम्हारी जानकारी के !

वो लकीरें
जो कटती पिटती है
अन्य लकीरों से;
कई जगह,
सैकड़ो बार ,
बिल्कुल मूक होकर !

वो लकीरें
जो सीधी नहीं वरण
खिंची हैं;
टेढ़ी-मेढ़ी और तिरछी,
उबड़ खाबड़ धरातल पर !

तुम रास्ता पीटते हो
उन्ही लकीरों पर,
और तय करते हो
सफ़र जिंदगी का ;
बस अपनी हथेली भर !


रंग

रंग
------

मेरी उपस्थिति जगह-जगह
हरे या केसरिया रंगों में
दर्ज की गयी ;

सभाओं में ,
बैठकों में ,
सम्मेलनों में ,
पूजा स्थलों पर
और दंगों में !

मेरा वजूद
तोलते रहे
जनगणनाओं के पृष्ठ;
आजन्म मेरे वर्ण से
और
तथाकथित रूप से उभर आये
मेरे त्वचा के रंगों से !

मेरे शुभचिंतक
परिभाषित करते रहे
मेरे व्यक्तित्व को
मेरे सौंदर्य को
सर्वदा;
बस मेरे आँखों के रंगों से !

विवश मैं
कशमकश में खड़ा हूँ,
अपने आप को समेटे
कोशिश में ;
खुद को खुरच खुरच कर
रंगहीन बनाने की !

घृणा है मुझे रंगों से
और
रंगों से उपजी परिभाषाओं से !



भेड़ भेड़समूह भेड़चाल और गड़ेरिया

भेड़ भेड़समूह भेड़चाल और गड़ेरिया
----------------------------------------

कई भेड़ एक  भेड़चाल
एक समूह और एक गड़ेरिया!

समूह कई जगह
ऐसे ही भेंड़ो का !
हरेक समूह के लिए
अलग परिभाषित भेड़चाल
और अलग गड़ेरिया !

कई गड़ेरिये खुद बने भेंड़
किसी और भेड़समूह के लिए,
किसी और भेड़चाल में चल रहे
किसी और गड़ेरियेके पीछे !

भेड़ भेड़समूह भेड़चाल और गड़ेरिया !

 

Thursday, August 15, 2013

स्वतंत्रता

झुण्ड में यदा-कदा नरमुंड दिख ही जाता है ,
अन्यथा बहुतायत में तो
बस यहाँ पर भेंड हैं !
धमकी के जवाब में दहाड़ कभी कभार श्रव्य है
अन्यथा रंग रोगन किये
ज्यादा तो कागज़ी शेर हैं !
आत्मा छाती से नोचकर धूल धूसरित कर रखा है
एक दो के पास बची है रीढ़
बाकी तो धरा पर ढेर हैं !
उम्मीद की किरणें छिटक कर अब कहाँ चमकती है
स्वतंत्र कब होगी किरणें
और कितने समय की देर है ?

Monday, March 18, 2013

युवराज की पार्टी

(ये एक काल्पनिक घटना है और इसका किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति विशेष या स्थान से कोई सम्बन्ध नहीं है)

पौ फटी नहीं की युवराज के इस बेनामी फार्महाउस पर डॉक्टरों का आना जाना शुरू हो गया। दर्जन भर युवा नेता, अभिनेता, पेज थ्री व्यक्तित्व अपने लाल पड़े, लहूलुहान हुए सीनों के ऊपर मरहम पट्टी करवा रहे थे। कुछ की कराहें  निकल रही थी जब डॉक्टर गर्म पानी के सहारे उनके छातियों से फेविकोल से चिपके विभिन्न अर्धनग्न नायिकाओं और मॉडल्स के फोटो को खींच-खींच कर अलग कर रहे थे। चेले चमचे हैरान परेशान इधर उधर भाग रहे थे और डॉक्टरों को बेवजह हड़का रहे थे। प्रेस वालों को फार्महाउस के गेट पर ही रोक लिया गया था और कैमरा बिलकुल वर्जित था।

हुआ यह था की युवराज के नेता बनने की औपचारिक घोषणा के बाद उनके चमचों ने उनसे एक जोरदार  पार्टी की गुजारिश की। कुर्सी पर बैठे युवराज गहन मुद्रा में थे। ऐसा प्रतीत हो रहा था की रातों-रात पूरे देश की जिम्मेवारी उनके ऊपर आन पड़ी है। पाठकों की सुविधा के लिए यहाँ बता देना आवश्यक है की युवराज की स्थिति उन  नौजवानों  के जैसी है जो मूवी हॉल में फिल्म की (सुन्दर) अभिनेत्री को गरीब होकर बर्तन धोते देखकर तो फूट फूट कर रोते हैं पर अपने घर में रोज बरतन धोती हुई अपने माँ - बहन की कोई सहायता तक नहीं करते। आधे से ज्यादा उनके चमचे उनको मूर्ख ही समझते हैं और आहे-बगाहे उनकी पीठ पीछे उनका मजाक उड़ाते हैं पर सामने तो झुक के सलाम मारना ही होता है। ऐसा है युवराज का पूरा व्यक्तित्व।

खैर पार्टी का तमाम इन्तेजाम मिनटों में हो गया और देर रात पार्टी की शुरुआत हो गयी। युवराज के खासमखास मित्र जिसमे से कुछ नेता, चमचे, उद्योगपति, एक्टर, क्रिकेटर, समाजसेवी, पत्रकार सब युवराज के बुलावे पर पलक झपकते ही पार्टी में शरीक होने को आ गए। कुछ बूढ़े  जो अपने को अभी भी जवान समझते थे और पार्टी में युवराज के सबसे बड़े चमचे की पद के लिए आगे होड़ में रहते थे उन्हें भी युवराज का विशेष बुलावा मिला। पुलिस को पहले ही इन्फॉर्म कर दिया गया था सो मेहमानों की सुरक्षा के लिए पुलिस की एक टुकड़ी भी आन खड़ी थी। पार्टी का नशा जब ज्यादा चढ़ा तो मदिरा और नशे का दौर चालू हो गया। चमचे युवराज स्तुति गान में लग गए।

एक ने कहा "युवराज जी आपके हाथ में सत्ता आते ही सबसे पहले गली नुक्कड़ों पर सुलभ शौचालय की तर्ज पर सुलभ नशालय खुलना चाहिए जहाँ लोगों को अच्छी किस्म की मदिरा (देसी-विदेशी ) और अन्य तरह के नशा के साधन अच्छी और उचित कीमत पर उपलब्ध हो।" बाकियों ने हाँ में हाँ मिलायी। युवराज चुपचाप मदिरा का गिलास पकड़ गहन मुद्रा में खड़े थे। यूँ प्रतीत हो रहा था की उनका दिमाग पता नहीं कहाँ की कौन सी नयी स्ट्रेटेजी पर सोच में लगा पड़ा है। चमचों ने उनकी तुलना अरस्तू और सुकरात तक से कर डाली।

अचानक से एक फ़ोन आया और युवराज को रुखसत लेना ही पड़ा। चमचों ने रोकने की बहुत कोशिश की मगर फिर सबको ये भी पता था की युवराज पर तो पूरे देश की जिम्मेवारी है शायद वह इससे ज्यादा समय दे नहीं सकते। वैसे भी मेहमानों का सारा ध्यान तो भूने हुए मुर्गों और शराब के विभिन्न किस्मो में ज्यादा था। युवराज ने उनकी अनुपस्थिति में भी पार्टी जारी रखने का हुक्म दिया कुछ जरूरी निर्देश दिए और अपने कुछ बहुत खास चमचों के साथ पार्टी से रुखसत लेकर निकल पड़े।

पार्टी का नशा धीरे-धीरे और ऊपर जा रहा था। अन्दर की सारी सरगर्मी अब बाहर खड़े सुरक्षा में चौकस पुलिसकर्मी तक पहुँचने लगी थी। हंसी मजाक के साथ शराब का नशा कभी-कभी छोटे मोटे झगड़ों तक पहुँच रहा था और पार्टी में जमे कुछ लोग उन झगड़ो पर एक दूसरों को लतिया और जूतिया भी रहे थे। बाहर खड़े सारे पुलिसकर्मी चुपचाप अपने जगह पर जमे थे। आज ड्यूटी पर तैनात थे बड़े कर्मठ नौजवान अफसर  श्री आदर्शवादी सिंह। इंस्पेक्टर सिंह युवा थे, कई मैडल हासिल कर चुके थे और युवराज से जबरदस्त फैन थे। उन्हें पूर्ण विश्वास था की देश की चरमरा रही सामाजिक, आर्थिक व्यवस्था का इलाज बस युवराज और उनके चमचों के पास है। उन्होंने युवराज को विदेशी जूते पहने हुए खेतो में दिहाड़ी मजदूरों के साथ पसीना बहाते हुए भी देखा था और उनका विश्वास अटूट हो चूका था।

"ओ पालनहारे, निरगुन और न्यारे तुमरे बिन हमरा कौनों नाहीं" ।

मगर आज ये स्याह रात में चल रही पार्टी को देख कर और पार्टी के अन्दर चल रहे मस्ती, अभद्र भाषा, लात-जूतों का खेल देख कर उनका विश्वास थोडा डोल गया था। ह्रदय फटने लगा तो चले पकाने अपने एक मित्र को  जो श्री यथार्थवादी सिंह थे और अच्छे कर्मचारी होने के अलावा हकीकत की दुनिया में गोते लगाते थे।

आदर्शवादी उवाच, "यथार्थवादी भाई ये सब कुछ ठीक नहीं हो रहा। अपने सारे नौजवान नेता और सेलिब्रिटी जो कितने ही नौजवानों के आदर्श हैं इस तरह के खेल में लगे हुए हैं। ये कर क्या रहे हैं? इन सबसे देश को  बहुत आशा है और इन्हें तो दिन-रात देश की उन्नति के बारे में सोचना चाहिए और अनवरत काम करना चाहिए था। ये कहाँ शराब के नशे में एक दूसरे के साथ गाली गलौज कर झगड़ रहे हैं। हमें अन्दर चल कर इन लोगों को समझाना चाहिए। "


यथार्थवादी पहले से अचानक आ लगी इस देर रात की ड्यूटी से शायद उखड़े हुए थे। उनको  आदर्शवादी की बात अनर्गल लगी। उखड़े स्वर में बोले "लो कर लो बात ! तुम फिर चालू हो गए। अरे भाई ये सब नए ज़माने के ब्राह्मण हैं और उनका झगडा या मतान्तर उनको आपस में सुलझाने दो। ये मेरे तुम्हारे जैसे नए ज़माने के शूद्रों के वश की बात नहीं। सदियों पहले कर्म के आधार पर वर्ण तय होते थे, फिर जन्म के आधार पर। अब ये धन के आधार पर तय होता है। पहले धन कमाओ और नए ज़माने के ब्राह्मणों में अपनी जगह बनाओ फिर देना फंडे।"

आदर्शवादी सोच में पड़ गए। यथार्थवादी की  इज्जत करते थे सो उलट कर  बोलने की हिम्मत हो नहीं सकी। चुप ही रहे। इधर यथार्थवादी का प्रवचन चालू था।

"इतना मुश्किल भी नहीं अपना वर्ण बदलना इस खुली व्यवस्था में। उदहारण के लिए अपने कई नेताओं, फिल्म स्टारों, क्रिकटरों, प्रवचन देने वाले साधुओं को देखों। ये सब लोग कमजोर वर्ग से आये। इन सब लोगों ने पहले धन कमाया और अपनी जगह नए ज़माने के ब्राह्मणों में बनाई और अब अगर वो कुछ फंडे देंगे तो सब सुनेंगे। बाकियों की कोई क्यों सुने? नियम से तो जब इन नए ज़माने के ब्राह्मण सब पार्टी कर रहे हैं तो हम सब नए ज़माने के छोटे वर्ण वालों को अपने अपने जूते - चप्पल सर के ऊपर रख कर चुपचाप खड़े रहना चाहिए। गनीमत समझो की उनके सामने जूते चप्पलों में गुजरते हो अभी तक। ये तो अपना सौभाग्य है कि हमें कमसे कम अन्दर से कुछ खाने वाने को भी मिल रहा है। देना सीखो ... लेना नहीं। क्योंकि "जो लेता है वो नेता है और जो देती है वो जनता है"। और देना मतलब फंडे देना नहीं।"

आदर्शवादी को लगा की यथार्थवादी का शायद मूड ज्यादा ख़राब है और इस वक़्त ज्यादा जिरह करना अच्छा नहीं है। मगर उनकी बात ठीक भी तो है।  मुंह लटकाए चुपचाप पुलिस जीप की दूसरी तरफ जाकर बैठ गए।

अन्दर का हाल सुनिए। थोड़ी देर सर-फुट्टोवल के बाद और कुछ दबंग युवा नेताओं के बीच-बचाव के बाद छोटे मोटे हो रहे मुक्केबाजी का दौर ख़तम हो गया था औए एक रंगीले युवा ने DJ से कह कर नया फेविकोल वाला गाना चालू करा दिया था। गाना बजते ही पिक्कारिओं की गूँज उठी। शराब के नशे में अपादमस्तक सराबोर देश के कुछ युवा धनाढ्य जो आज इस पार्टी के लिए जमा हुए थे, गाने की ताल पर थिरकने लगे।

"मेरे फोटो को सीने से यार चिपका ले सैयां फेविकोल से "


एक मुस्टंड नव धनाढ्य अपराधिक चरित्र के दसवीं फेल युवा नेता को अचानक न जाने क्या सूझी और आनन फानन में अपनी SUV से जाकर एक दुकान वाले को धमका कर पूरा फेविकोल के डिब्बों का बक्सा ही ले आये और फिर सचमुच अपनी बनियान उतारी और अपनी एक पसंदीदा फोटो को अपने सीने पर फेविकोल के सहारे चिपका डाला। नशे में धुत बाकी लोगों को ये नायब आईडिया बड़ा पसंद आया। फिर क्या था, सब के सब अपनी अपनी पसंद की अर्धनग्न नायिकाओं और मॉडल्स के फोटो को अपने अपने सीने में फेविकोल से चिपकाने लगे और बेतहाशा नाचने लगे। मजाक मजाक में कई घंटे निकल गए और नाच नाच के थक गए सब पार्टी प्रेमी सीने पर चिपके हुए फोटो के साथ वहीँ फर्श पर  विचित्र पोजीशन में लुढ़कने लग गए। और फिर फेविकोल ने तो अपना असर दिखाना ही था।

मुर्गे की पहली बांग के साथ ही सुबह होते ही जब होश आया तो सबने अपनी अपनी आँखे मली और जब अपने सीने से चिपके फोटो को निकलने की कोशिश की तो ........


आगे का हाल तो आप सबको पता ही है ..............