Saturday, August 24, 2013

लकीरें हथेली पर

लकीरें हथेली पर
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हथेली की लकीरों पर,
चलते रहोगे उम्र भर
बड़े सधक चालक हो.…  !

वो लकीरें,
जो खिंची हुई है जन्म से
तुम्हारी हथेली पर;
और
शायद बिलकुल स्थिर है;
या बदलती है अपनी जगह
सूई की नोक भर से भी कम
बिना तुम्हारी जानकारी के !

वो लकीरें
जो कटती पिटती है
अन्य लकीरों से;
कई जगह,
सैकड़ो बार ,
बिल्कुल मूक होकर !

वो लकीरें
जो सीधी नहीं वरण
खिंची हैं;
टेढ़ी-मेढ़ी और तिरछी,
उबड़ खाबड़ धरातल पर !

तुम रास्ता पीटते हो
उन्ही लकीरों पर,
और तय करते हो
सफ़र जिंदगी का ;
बस अपनी हथेली भर !


रंग

रंग
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मेरी उपस्थिति जगह-जगह
हरे या केसरिया रंगों में
दर्ज की गयी ;

सभाओं में ,
बैठकों में ,
सम्मेलनों में ,
पूजा स्थलों पर
और दंगों में !

मेरा वजूद
तोलते रहे
जनगणनाओं के पृष्ठ;
आजन्म मेरे वर्ण से
और
तथाकथित रूप से उभर आये
मेरे त्वचा के रंगों से !

मेरे शुभचिंतक
परिभाषित करते रहे
मेरे व्यक्तित्व को
मेरे सौंदर्य को
सर्वदा;
बस मेरे आँखों के रंगों से !

विवश मैं
कशमकश में खड़ा हूँ,
अपने आप को समेटे
कोशिश में ;
खुद को खुरच खुरच कर
रंगहीन बनाने की !

घृणा है मुझे रंगों से
और
रंगों से उपजी परिभाषाओं से !



भेड़ भेड़समूह भेड़चाल और गड़ेरिया

भेड़ भेड़समूह भेड़चाल और गड़ेरिया
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कई भेड़ एक  भेड़चाल
एक समूह और एक गड़ेरिया!

समूह कई जगह
ऐसे ही भेंड़ो का !
हरेक समूह के लिए
अलग परिभाषित भेड़चाल
और अलग गड़ेरिया !

कई गड़ेरिये खुद बने भेंड़
किसी और भेड़समूह के लिए,
किसी और भेड़चाल में चल रहे
किसी और गड़ेरियेके पीछे !

भेड़ भेड़समूह भेड़चाल और गड़ेरिया !

 

Thursday, August 15, 2013

स्वतंत्रता

झुण्ड में यदा-कदा नरमुंड दिख ही जाता है ,
अन्यथा बहुतायत में तो
बस यहाँ पर भेंड हैं !
धमकी के जवाब में दहाड़ कभी कभार श्रव्य है
अन्यथा रंग रोगन किये
ज्यादा तो कागज़ी शेर हैं !
आत्मा छाती से नोचकर धूल धूसरित कर रखा है
एक दो के पास बची है रीढ़
बाकी तो धरा पर ढेर हैं !
उम्मीद की किरणें छिटक कर अब कहाँ चमकती है
स्वतंत्र कब होगी किरणें
और कितने समय की देर है ?