Thursday, March 20, 2014

2014 चुनाव  पर विशेष 

खेल 

वो खेल रहे हैं, हम झेल रहे हैं !
कीचड में बैठे नंगे - पुंगे वो ;
साफ़ सफाई का दंड पेल रहे हैं !
वो खेल रहे हैं, हम झेल रहे हैं !

सौ में से साठ तो  गुंडे हैं,
छोटी गलियों के टुंडे हैं ;
कभी सजा मिली सो पता नहीं 
पर हफ्ता दो हफ्ता जेल रहे हैं !

वो खेल रहे हैं, हम झेल रहे हैं !

शिक्षा शिक्षण में विचित्र रहे 
ठग विद्या के बस मित्र रहे ;
दसवी कि कैसे बता सकें 

ज्यादातर पांचवी फेल रहे हैं !

वो खेल रहे हैं, हम झेल रहे हैं !

दुनिया भर की वो सैर करें 

पाकिस्तान से कागज़ी वैर करें ;
ऊपर से चिकने दिखे जरुर 

अंदर से पूरे बेमेल रहे हैं !

वो खेल रहे हैं, हम झेल रहे हैं !

बहुतों के गंदे चित्र दिखे 

बहाने बड़े विचित्र दिखे ;
किसका किसका उदाहरण  दें 
सब सिद्धांतों की भेल रहे हैं !

वो खेल रहे हैं, हम झेल रहे हैं !

बस चले तो बेच दे लाल किला 

इस देश के सरे राज्य - जिला ;
सौदेबाज़ी कि इस दुनिया में ,
आधे मैडम के पटेल रहे हैं !

वो खेल रहे हैं, हम झेल रहे हैं !

पीछे हम सब उन्हें गाली दें 

फिर रुपयों के बदले ताली दें
चुनाव में बोतल दारू की लेकर  

हमहीं संसद में उन्हें ठेल रहे हैं !

वो खेल रहे हैं, हम झेल रहे हैं !