Thursday, October 24, 2019

दूध की थैली


गन्नू सकुचाता हुआ मारवाड़ी के दुकान पहुँचता है। पहली बार वहां से कुछ खरीदने जो आया था। रोजाना वह बस्ती के बगल के कटघरे वाली छोटी दुकान से आधा लीटर की दूध की थैली खरीद लाता है जिसमे उसके घर दिन भर की चाय बनती है और बचा-खुचा दूध उसका बच्चा पी लेता है । आज सुबह जब वह दूध की थैली लेने उस छोटे दुकान पर पहुंचा तो दुकान बंद मिली। बीवी ने कहा चाय बनाने भर दूध घर में बचा है सो शाम को दूध ले आना। शायद शाम तक दुकानदार अपनी दुकान खोल डाले। गन्नू को ये बात जँच गयी और वह चाय पी कर सीधा काम पर चला गया। काम से वापिस आते समय गन्नू ने देखा, उसका नियमित दुकान अभी भी बंद है। अब दूध बस सामने वाली मारवाड़ी की उस बड़े किराने की दुकान में ही मिल सकती थी जहाँ वह आज तक जाने से सकुचाता रहा है। उसे लगता है, वह बड़ी दुकान उस जैसे बस्ती के गरीब लोगों के लिए नहीं बनी है।  गन्नू एक दिहाड़ी मजदूर है। वह आशंकित है कि क्या पता पूरे पैसे देने पर भी मारवाड़ी उसे दूध की थैली देने को तैयार ही न हो। मगर उसकी बीवी उसे वहां जाकर दूध लाने के लिए उकसा रही है। गन्नू की बीवी एक माँ भी है, अपने बच्चे की फिक्र है। खैर बीवी के काफी जोर देने पर गन्नू ने कुर्ते के जेब में दूध के लिए पैसे गिन कर रखे और धीमे कदमो से ठिठकता हुआ दुकान की ओर बढ़ चला । हर बढ़ते कदम के साथ उसे प्रतीत हो रहा था कि उसके पैरों पर भारी पत्थर बंध गए हो और वह कदमों को बेमन खींच रहा है।

मारवाड़ी की दुकान बहुत सारे विभिन्न तरीके की लाइट  से जगमग है। शाम का वक़्त है और बगल की बड़ी सोसाइटी के बहुत सारे लोग रोजमर्रा की खरीदारी कर रहे हैं। शाम को अक्सरहाँ भीड़ जरा ज्यादा होती है। लोगबाग अपनी-अपनी नौकरियों से वापिस आकर घर पहुँचने से पहले जरूरत की चीजे खरीदने इस बड़ी दुकान पर रुक जाते हैं।  वहां अच्छे कपड़ों में खड़े ग्राहकों के बीच गन्नू असहज महसूस करता है और कुर्ते की जेब में पैसे फिर से टटोलता है।  हाँ.....  पैसे तो पूरे हैं यह सोचकर जरा सा सहज हो जाता है। गन्नू पैसे जेब से निकाल मारवाड़ी के सामने रखकर दूध की थैली मांगता है। मारवाड़ी की पारखी नजर सिक्कों को देखनेभर से  ही समझ जाती है की पैसे पूरे हैं और वह एक थैली दूध की गन्नू को थमा देता है। बगल में खड़े एक शानदार ऑफिसर से दिखने वाले ग्राहक की नजर दूध पर जाती है और प्रतीत होता है की उसे कुछ स्मरण हो आया। उस संभ्रांत से दिखने वाले ग्राहक ने मारवाड़ी से शिकायत किया कि सुबह  जो दूध उसका घरेलू नौकर  खरीद कर घर ले गया था वह ख़राब निकला। मारवाड़ी बड़ी आत्मीयता से बताता है कि शायद गलती से उसके लड़के ने दूध की पुरानी थैली दे दी होगी और वह उसके पैसे नहीं लेगा। अभी के बिल में उतने पैसे कम ले लेगा। गन्नू को मारवाड़ी का व्यवहार बहुत अच्छा लगता है।
खोली में वापिस आकर चाय पीते वक़्त वह अपनी पत्नी को सब बातें बताता है। मारवाड़ी की ढेरों प्रशंषा करता है। उसे उस वक़्त छोटी दुकान वाला दुकानदार झगड़ालू लगता है। बीवी कहती है मैं न कहती थी की तुम वहीँ से सामान लाया करो। साफ़ सुथरी जगह है।

अब गन्नू रोजाना मारवाड़ी की दुकान से दूध क्या कुछ और भी छोटो मोटी रोजमर्रा काम में आने वाली चीजें खरीदने लगा है।  उसका आत्मविश्वास काफी बढ़ गया है। वह शान से पैसे लेकर बड़ी दुकान तक जाता है और हक़ से चीजें मांगता है। उसे यह सोच कर अच्छा लगता है कि वह बड़े और संपन्न लोगों के साथ खड़ा होकर घर की खरीदारी उस चमचमाते दुकान से करता है।

आज सुबह जब गन्नू दूध की नयी थैली लेकर आया और पत्नी ने दूध उबाला तो दूध फट गया। गन्नू को ध्यान आया की दूध लेने के वक़्त दुकान पर मारवाड़ी का छोटा बेटा था।  उसे विश्वास था शायद लड़के ने गलती से उसे पिछले दिन का बचा पुराना दूध दे दिया होगा। वह बीवी को समझाता है कि शाम में वह मारवाड़ी से बात करके एक नयी थैली ले आएगा वह भी बिना पैसे दिए हुए। काम में जाने की जल्दी में उसने काली चाय ही पी ली और घर से निकल पड़ा।

शाम को काम से आकर गन्नू सीधा बड़ी दुकान पर पहुँच जाता है। दूध मिले तब तो घर पर चाय बने। अंतर्मन में जरा सी हिचक तो है। क्या पता मारवाड़ी बिना पैसे लिए दूध देने से इंकार कर जाये। मगर उसे विश्वास है की सेठ ऐसा नहीं करेगा। वह अब मारवाड़ी का रोजाने का ग्राहक भी तो है।
"सेठ आज सुबह दूध की थैली ले गया था। "
"हूं " सेठ बही खातों में व्यस्त है। आज दुकान पर लोग भी जरा कम हैं।
"दूध गरम करते ही फट गया।"
"तो?" मारवाड़ी  अभी भी बही खाते में व्यस्त है।
"एक नयी थैली देना।" गन्नू पूरी कोशिश करके एक साँस में बोल जाता है।
"पैसे लाये हो ?" अब मारवाड़ी ने ऊपर देखा। शायद वह कुछ भांप गया है।
"पैसे क्यों ? ये तो ख़राब दूध के बदले है।आपके लड़के ने शायद गलती से पुराना  दूध दे दिया था सुबह में। " गन्नू के आवाज़ में दबा कुचला साहस और अधीरता द्रस्टव्य है।
"अबे पागल है क्या ? मैं रोज पांच सौ लीटर दूध बेचता हूँ। शाम होते-होते सब दूध खल्लास हो जाता है, और तू बोल रहा है पुरानी दूध दे दी ?" मारवाड़ी झल्ला कर बोलता है। उसकी आवाज़ भी तेज है।
आवाज़ तेज होते ही अगल-बगल में खड़े कुछ ग्राहकों की नजर मारवाड़ी और गन्नू की तरफ जाती है। मारवाड़ी परिस्थिति भांप लेता है। आवाज़ को मध्यम करके कहता है "भाउ, तूने दूध यहाँ से ले जाकर फ्रिज में रखा था ?"
गन्नू के पास चीज़ें ठंढा रखने के लिए फ्रिज नहीं है। अगर रहेगा भी तो वह  उसमे बाजार से खरीदकर  बियर की बोतल रखेगा और आराम से घर बैठकर पीयेगा। ये तो उसका कब का सपना है। मगर फिलहाल तो फ्रिज रखने की उसकी औकात नहीं है। रोजाना दूध ले जाते ही उसकी बीवी दूध गरम करके रख देती है और वह दिन भर ख़राब नहीं होता। क्षण भर उसका ध्यान भटका मगर फिर उसने मारवाड़ी को अपनी तरफ घूरते देखा तो जैसे हड़बड़ी में बोला।
"सेठ, मेरी बीवी ने तो जाते ही दूध गरम किया था और तभी दूध फट गया था, दूध से बदबू भी आ रही थी। "
मारवाड़ी के चहरे पर चमक आ जाती है।  थोड़ा कुटिल मुस्कान के साथ बोलता है "ओह तो यहीं कर दी न गलती। दूध को गरम करना ही नहीं था। बस जरुरत भर निकाल कर चाय के लिए उपयोग करना था। ऐसे में दूध लम्बे समय तक ख़राब नहीं होता है। चल कोई बात नहीं आगे से ऐसा ही करना।"
सेठ फिर से पुराने हिसाब किताब में खो जाता है।

गन्नू निशब्द है और शायद मायूस भी। उसने सेठ से ऐसे व्यवहार की कल्पना नहीं की थी। गन्नू बगले झांकने लगता है। अगल बगल के कुछ ग्राहकों ने उसे देखा और शायद उन्होंने दोनों की वार्तालाप भी सुनी थी। उन्हें सेठ का यह व्याख्यान जरा विचित्र तो लगा होगा मगर किसी ने कोई टिप्पणी नहीं की। दुकान पर क्रय-बिक्री सामान्य तरीके से चलती रही। गन्नू थोड़ी देर ठहर कर वापिस मुड़ा और बस्ती की और धीरे धीरे बढ़ने लगा। सोचने लगा "इससे अच्छी तो वह छोटी दुकान है जहाँ पर वह दुकानदार से जमकर झगड़ा और गाली गलौज तो कर सकता था।"

अब गन्नू दूध की थैली फिर से छोटे दुकान से खरीदने लगा है।