Monday, November 5, 2012

युवराज का नायाब आईडिया

युवराज नेताजी से बहुत नाराज हैं, ऐसा नेताजी को अभी-अभी पता चला है। युवराज के एक खासमखास चमचे ने आकर फिलहाल कुछ दिनों से स्पष्ट हो रही युवराज की बेरुखी का कारण  नेताजी को बताया। ऐसा जानते ही नेताजी डर से सकपका गए। अब ये तो सुनिश्चित था कि नेताजी को युवराज का कोपभाजन बनना ही पड़ेगा मगर सजा का स्तर क्या होगा ये अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया था। प्रेस में आ रही मंत्रिमंडल बदलाव का समाचार सुनकर वो असमंजस में थे कि कहीं युवराज की नाराजगी के चलते उनसे उनका मंत्री विभाग न छीन लिया जाये जिसपर  वो पिछले तीन वर्षों से कायम थे और उनके हिसाब से ऐतिहासिक काम कर रहे थे।

तभी न्यूज़ आया की सचमुच नेताजी की दुनिया लुट चुकी है और उनके हाथ से मंत्रीपद निकल कर उनके परम विरोधी साहूजी के हाथ चला गया है जो आजकल युवराज के खासमखास माने जा रहे हैं। खबर आते ही नेताजी उदासी में डूब गए और पैग पे पैग मारने लगे। उनकी पत्नी ने अपना सर पीट लिया। इस गर्मी छुट्टी में स्विट्ज़रलैंड जाने की सारी उमीदों पर पानी फिर चुका था। अपने गुस्से को काबू न कर पाते वो नेताजी को खड़ी-खोटी सुनाने लगी तो नेताजी उदास शब्दों में इतना ही बोल पाए "शांत भागवान, शांत! अपने चिराग ने ही अपने घर में आग लगा डाला तो कोई क्या कर सकता है?"

 "अब पछताए क्या होत जब चिड़िया चुग गयी खेत।"

दरअसल पिछले "मैंगो" चुनाव से तुरंत पहले, एक सोची समझी रणनीति के तहत महाराज ने युवराज के एक एम्बिसिअस प्रोजेक्ट "पूजास्थल पादुका चोरी नियंत्रण" को बड़े पैमाने में शुरू किया। युवराज को यह ज्ञात था की पूरे देश भर में, भाषा, जाति, धर्म और राज्यों की सीमाओं से हट कर, हर धर्म के पूजा स्थलों से चप्पलों, जूतों की चोरी का एक स्व विकसित सेक्टर है जो अन-आर्गनाइज्ड है और उसमे विकास की भरपूर गुंजाईश है। ये समय की मांग थी कि सरकार इस सेक्टर में भी नियमितता लाये और इस सेक्टर से जुड़े लोगों के ऊपर कुछ रूल्स रेगुलेशन लागू करे। इन सब चीज़ों के लिए त्वरित रूप से एक मंत्रालय का निर्माण किया गया। नेताजी के बेटे पन्तु (पतनवीर लेता) स्कूल के ज़माने से इस तरह की छोटी मोटी चोरियों में अच्छी खासी अनुभव रखता था और यह महाराज को भी मालूम था। महाराज ने यह सोचकर की पन्तु का इस सेक्टर का अनुभव काम आएगा, नेताजी को इस नए मंत्रालय का कार्य भार सौंप कर उन्हें मंत्री बना दिया। नेताजी ने बहुत कम समय में मंत्रालय का काम बखूबी निभाया और पूरे देश में पादुका चोरी का लाइसेंस अपने मन मुताबिक  रजिस्टर्ड चोर-दलों को ले-दे कर वितरित कर दिया। एक चौथाई से ज्यादा लाइसेंस तो पन्तु के द्वारा प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से चल रहे चोर-दलों को ही मिला। "मैंगो" चुनाव आते-आते हालात  काफी सुधर गए थे। जनता खुश थी, महाराज अति प्रसन्न, और युवराज की तो बांछे खिल गयी थी। पहली बार उसके आईडिया को इस स्तर पर लोगों ने स्वीकारा था। अब तक विपक्षी लोग उसे प्रत्यक्ष और समर्थक लोग परोक्ष रूप से मंदबुद्धि बोलते थे। चमचों ने युवराज के इस नायाब आईडिया का हर जगह जम कर  प्रचार किया और युवराज की स्तुति में चप्पल चालीसा तक लिख डाली। अब लोग बिना भय के बेरोक टोक चप्पल/जूते खोल के पूजा स्थल जाते थे। वापस आने पर अगर उनकी पादुकाएं जगह पर नहीं मिलती थी तो वो वहां चलाये जा रहे सरकारी सहायता केंद्र से निशुल्क सेवा पाते थे। सेवा केंद्र के कर्मचारी इन्टरनेट के जरिये वहां के लाइसेंस्ड सारे चोर-दलों से संपर्क करते थे और गायब हुए जूते/चप्पल तुरंत ट्रैक हो जाते थे। आपको बस एक मामूली सी रकम उस चोरी करने वाले चोर-दल को अदा करनी होती थी और आपकी पादुकाएं अच्छे हालत में आपको वापिस मिल जाती थी। अमूमन कोई अन रजिस्टर्ड चोर-दल या दुसरे एरिया के चोर-दल अगर आपकी पादुका ले गया तो सरकारी सहायता केंद्र त्वरित करवाई करके आपकी पादुका को सही सलामत आप तक पहुंचाता था और नियम के तहत दोषी पाए गए चोर-दल के ऊपर मुक़दमा चलाया जाता था। नेताजी ने बहुत कम समय में इस सारे सेटअप को उचित दिशा दी थी और युवराज उनके काम से बहुत खुश हो गए थे। "मैंगो" चुनाव में इसी उपलब्धि को एक बड़ा मुद्दा बना कर महाराज ने युवराज के क्रन्तिकारी सोच को प्रोजेक्ट कर उसे भविष्य का नेता बताते हुए विपक्षी पार्टियों को धता बता दिया था। नेताजी अब महाराज के "किचेन कैबिनेट" के सदस्य बन चुके थे और युवराज के खासमखास थे। महाराज ने मात्र उनका ही मंत्री-विभाग चुनाव के बाद भी बरक़रार रखा था।

सबकुछ ठीक थक चल रहा था की अचानक से पन्तु के द्वारा की गयी एक गलती नेताजी के गले में फांस बन गयी ऐसा प्रतीत हो रहा था। हुआ यह की युवराज ने अपने युवा मित्रो से मिलने का अचानक प्रोग्राम बना लिया वो भी नेताजी के शहर में। नेताजी ने तुरंत अपने सारे चमचो को युवराज के स्वागत के लिए की जा रही सारी  तैयारियों में लगा दिया। सुना युवराज किसी गरीब के घर जाकर खाना पसंद करते हैं सो पिछले दरवाजे से कैसे पांच सितारा होटल का खाना उस गरीब के घर पहुँचाया जाये, इसकी जुगत भी उन्होंने भिड़ा डाली थी। इसके अलावा युवराज के द्वारा की जा रही युवा चेतना रैली के लिए खाने और पैसे का प्रोलोभन दे कर गांवों से बहुत  सारे बेरोजगार युवाओं का भी इन्तेजाम नेताजी और पन्तु ने बखूबी निभाया था।

तक़दीर का तमाशा देखिये। "जब किस्मत में हो रोड़े, तो कहाँ से मिलेंगे पकोड़े?"

हुआ यह कि प्रोग्राम के मुताबिक, युवराज ने एक गरीब के घर पिछवाड़े के दरवाजे से लाया हुआ पांच सितारा होटल का खाना खाया, चमचे के साथ दो चार कश लगाए और उसके बाद  सभा स्थल तक जाते-जाते रास्ते में एक ATM पर रूक कर पैसे निकालने लगे। युवराज ATM को लक्ष्मी माता का मंदिर मानते थे और ATM के प्रति पूरी श्रद्धा रखते थे। इसीलिए वो ATM में जाने से पहले अपने जूते जरुर निकाल लिया करते थे। उस दिन भी उन्होंने ऐसा ही किया। युवराज जैसे ही पैसे लेकर  ATM से बाहर निकले, उन्होंने अपना जूता गायब पाया और उनके गुस्से का कोई अंत नहीं था। वह जूता युवराज को बहुत प्यारा था और उन्होंने उसे खास विदेश से मंगवाया था। चमचे तुरंत ही जूते की खोज में इधर उधर निकल पड़े। एक चमचे ने सुझाव दिया की सारा दोष विपक्ष पर जड़ दिया जाये और जल्दी से एक जूता खरीद कर यहाँ से निकला जाये। युवराज के एक खासमखास चमचे ने उनको नायाब सुझाव दिया। बोला "क्यों नहीं आपके द्वारा शुरू किये हुए पादुका चोरी विभाग की मदद ली जाये और जनता को एक औचक डेमोंस्ट्रेशन दिया जाये"। युवराज को सुझाव पसंद आया और एक परिपक्व नेता की तरह वो अपना गुस्सा पी गए। खड़े-खड़े घोषणा कर डाली "चलो पादुका चोरी नियंत्रण सहायता केंद्र चला जाये और जूता चोरी की घटना का रपट लिखाया जाये"। पूरा हुजूम उधर ही निकल पड़ा। युवराज नंगे पांव ही सड़क पर पैदल चल पड़े। हजारों की हुजूम साथ थी। न्यूज़ चैनल्स पर लाइव प्रसारण जारी था। पादुका चोरी नियंत्रण सहायता केंद्र पर ड्यूटी पर जमे एक अधिकारी ने तुरंत ही इन्टरनेट पर सारे चोर-दलों से संपर्क साधा और CCTV के फुटेज देख डाली। मिनटों में चोर का पता चल गया। धत तेरे की ..........! युवराज के जूते किसी और ने नहीं मगर आदत से मजबूर पन्तु ने चोरी कर डाले थे। दरअसल वो जूतों का जोड़ा था ही बहुत सुन्दर कि किसी भी चप्पल चोर का मन मचल जाए। विदेशी जूता चोरी करने  का लोभ पन्तु छोड़ नहीं पाया और उसने युवराज के जूते उड़ा डाले थे। युवराज को जूता तो मिल गया मगर वो क्रोध से आग बबूला हो गए और अपनी यात्रा को वहीँ ख़त्म कर राजधानी लौट गए।

इस घटना के बाद से नेताजी की घिघ्घी बंध गयी और डर तथा शर्म के मारे वो युवराज से कभी मिलने राजमहल न जा पाए। मन में शंका थी की मंत्री पद छीन लिया जायेगा। कुछ लोगों ने भरोषा दिलाया तो था कि शायद पन्तु की इस गुस्ताखी की इतनी बड़ी सजा नेताजी को न मिले मगर तक़दीर ने भी धता बता दिया और मंत्री पद से हाथ धो बैठे .............

Friday, October 26, 2012

नेताजी की उधेड़बुन - एक लघु कथा

नेताजी परेशान  हैं। दो दिन से ठीक से खाया पिया और सोया नहीं। दरअसल हुआ यह कि नेताजी ने अपने दूध वाले के नाम से एक फर्जी कंपनी खोल रखी थी और उस कंपनी को अपने पैसे से कागजी कर्ज देते थे। फिर वही कंपनी उनके द्वारा चलायी जा रही एक दूसरे कंपनी को कागजी कर्ज देती थी। इस तरह से उन्होंने एक अच्छा खासा ब्लैक होल बना लिया था जिसमे जितना भी पैसा डालो वह निगल जाता था। सबकुछ ठीक था और ये  गोलमाल बहुत से लोगों और दूसरे नेताओं को पता भी था मगर कभी कोई कुछ बोलता नहीं था। आहे बगाहे वो भी नेताजी की इस शातिर व्यवस्था का जरुरत पड़ने पर फायदा उठा लिया करते थे। अचानक से एक पगला खिचड़ीबाल क्या आ गया और उसने प्याज के छिलकों की तरह परत दर परत उधेड़नी शुरू कर दी। सारे टीवी चैनल वाले भी टीआरपी के चक्कर में नेताजी और उनके इस नए ब्लैक होल कांड के ही पीछे पड़ गए।

नेताजी सोचते सोचते थक गए "अरे मैंने क्या बिगाड़ा है? एक बड़े नेत्री के दामाद ने क्या कुछ गड़बड़झाला नहीं किया मगर उसे तो कोई कुछ बोलता नहीं है। बंदा रात में भी काला चश्मा पहन के इत्मिनान से देश विदेश की सैर कर रहा है। लोगों को "मैंगो" और देश को "बनाना" बता रहा है। इतना ही नहीं, पड़ोस की पार्टी के मेरे परम  मित्र और बड़े नेताजी के खानदान  के नाम तो पूरे भारत वर्ष की करीब-करीब सारी जमीन, इमारते, नदियाँ, नहरे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से होगी। सुना अब वो लोग लाल किले को अपने नाम करवाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। किसी ने कुछ कहा? मेरे इस अदने से कृत्य के पीछे सारे औने पौने लोग पड़े हैं। अरे वाह जी ......, तुम करो तो CC (कोड ऑफ़ कंडक्ट) और हम करे तो MC(????) ?"

आज तो सुबह से चाय तक नहीं पी नेताजी ने। दूधवाले ने दो दिन से दूध बंद कर रखा है। नेताजी को पाउडर वाली और टेट्रा पैक वाली दूध की चाय पसंद नहीं और आधे से ज्यादा पैकेट वाली दूध की कंपनियां तो उनकी ही है और उनको पता है की वहां किस तरह की दूध बना के बेची जाती है।

दूधवाले की परेशानी अलग है। वो कहता है, मेरे नाम से और मेरे तबेले के पते से आपने कंपनी खोली, कोई बात नहीं मगर मुझे दूध की मलाई नहीं तो कम से कम बर्तन से चिपक कर जलने वाला दूध/मलाई का भाग ही दे दिया होता। ये आम लोगों को भी आम खाने की आदत लग गयी है। उनको पता ही नहीं की "जो लेता है वो नेता है! जो देती है वो जनता है!" अब किसको किसको आम खानी और खिलानी है ये तो कोई स्पष्ट बता दे नेताजी को। सारी प्रॉब्लम वहीँ से शुरू होती है। सरकार  को ये खाने खिलाने का काम स्ट्रक्चर्ड करना चाहिए और रूल्स बनाने चाहिए नहीं तो कोई भी ऐरा गैरा  नत्थू खैरा आके बोलता है "मेहनतकश इस दुनिया में हम अपना हिस्सा मांगेंगे, एक बाग़  नहीं एक खेत नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे .............."

चलो कोई नहीं कल से सारी फ़ोन लाइन्स बंद कर रखी  है और सारे न्यूज़ चैनल्स बंद। कौन मुंह लगे इन छिछोरों से। कहीं कुछ उल्टा सीधा मुंह से निकल गया तो और हंगामा अलग।

सोचते सोचते आँख लगी ही थी की एक लठैत चमचा अपना मोबाइल लहराते आया "नेताजी ........अरे उठिए नेताजी ! देखिए  सताधारी दल के वाचाल, अकर्मण्य, बृहदमुखी घिग्गी बाबा का फ़ोन आया है। लगता है अब आपके सारे दुःख जल्द ही दूर होने वाले हैं। उठिए और बात कीजिये घिग्गी बाबा से और कोई रास्ता निकालिए। कब तक अपने साथ हमारा भी आना जाना बंद करके रखियेगा। घिग्गी बाबा बहुत ही घाघ किस्म के इंसान हैं और उनके पास  किसी भी समस्या का निदान है।"

नेताजी ने मोबाइल अपने कान से लगाया और रो पड़े। उनका ज्यादा गुस्सा आम आदमी और रिपोर्टरों पर ही है ऐसा उनके वार्तालाप से ज्ञात होता है।

"घिग्गी बाबा, ये भी कोई तरीका है क्या मेरे जैसे राष्ट्रीय नेता से व्यवहार करने का? पूरा देश आजकल मेरे पीछे पड़ गया है। क्या आम ..... क्या खास?"

घिग्गी बाबा  उवाच "आपने भी तो गलती किया। पहले तो किसी के ऊपर भी आप लांछन लगाते रहे। जब-तब आपके मुंह से हमारे डपोड़शंख मंत्री प्रमुख और हाइकमान के बारे में अपशब्द निकलते रहे हैं। आपने उनके बाल बच्चों तक को नहीं छोड़ा है। आपने शायद वक़्त फिल्म का वो डायलॉग नहीं सुना है की जिनके खुद के घर शीशे के होते हैं वो दूसरों पे पत्थर नहीं फेंकते हैं। अब अपनी जली तो पता चला की कैसी होती है खलबली? रिपोर्टरों को कुछ देना दिलाना था और न्यूज़ सप्रेस करवाना था जैसे बाकी इश्यूज में होता है"

नेताजी उवाच "अरे बाबा ऐसा नहीं है। उसी दिन रात वाली पार्टी में आपके सामने ही, जब मेरा अशोभनीय चित्र "मिस मजबूरी" के साथ एक रिपोर्टर ने ले लिया था तो वो न्यूज़ नहीं छापने  के लिए क्या मैंने उसे पैसे नहीं दिए? इतना कंजूस भी नहीं हूँ मैं। इसबार सारा प्रॉब्लम उस खिचड़ीबाल के कारन हुआ है। बंदा कम्प्रोमाइज को ही तैयार नहीं है। इधर कुछ दिनों से आम आदमियों की हिम्मत भी बहुत ज्यादा बढ़ गयी है। साले आसानी से पीछा ही नहीं छोड़ते। मेरे दूध वाले को देखो। उसके नाम पर एक नकली कंपनी मैंने खोल रखी है ये पता चलते ही उसने दूध देना छोड़ दिया। बोलता है मेरा हिस्सा दो ............ वो भी सूद के साथ। "

घिग्गी बाबा ठठा के हंस पड़े।

 नेताजी उवाच "कोई रास्ता तो बताओ घिग्गी बाबा? मेरी इस हालत का ऐसे तो मजाक न उड़ाओ।"

घिग्गी बाबा  उवाच "अब तो बस कहीं खोपचे में दुबके रहो और इस समस्या से उबरने के दो ही रास्ते हैं। पहला ये की भगवान से मनाओ की कोई और बड़ा सनसनीखेज इश्यू जनता या मीडिया के हाथ आ जाये या फिर पाकिस्तान या ISI ही कोई अच्छा खासा बम विस्फोट किसी बड़े शहर में करवा डाले। दूसरा उपाय ये है की कैसे भी दिन बिताते जाओ। अपने यहाँ थोड़े अरसे के बाद, लोग कोई सी भी चीज़ भूल जाते हैं। तुम्हारा स्कैंडल कौन सी खेत की मूली है? इतिहास गवाह है की हमलोगों ने वक़्त के साथ कैसे-कैसे कुकर्मो को भुला दिया है। दस पंद्रह दिन में सब कुछ अपने आप शांत हो जायेगा। बस भगवान का नाम लो और समय बिताओ। और हाँ एकबार बच  गए तो अपनी जबान जरा संभाल के चलाओ। हमारी पार्टी का  वैल्यू है कि  हम किसी भी नेता के पर्सनल चीज़ों पर या फॅमिली पर कोई टिप्पणी नहीं करते वरना हमारे पास भी अच्छा खासा इनफार्मेशन होता है।"

नेताजी सहमत हुए और दुआ सलाम के बाद मोबाइल वार्तालाप समाप्त हुआ। नेताजी उत्साहित लग रहे थे। उनकी आँख में चमक दृष्टिगोचर हुयी।  बस थोड़े दिन की बात है। कैसे भी आगे के बीस - तीस  दिन निकल जाये। लठैत चमचा भी उत्साहित हुआ। जोश में बोला "मालिक, कहीं कोई साइंटिस्ट को पैसा खिला के 24 घंटे के दिन को 12 घंटे का नहीं बना सकते ताकि ये दिन जल्दी से कट जाये? या फिर भगवान् को ही कुछ खिला पिला के ये पूरा महिना ही कैलेंडर से गोल करवा दे तो ..... !"

नेताजी मंद-मंद मुस्कुराने लगे और बोले कि चलो कोई बात नहीं आज पावडर वाली चाय ही पी लेते हैं ......... !




Friday, June 1, 2012

dikha nahi jamane ko par tum bhi jarur roi hogi !

दिखा  नहीं  ज़माने  को  पर 
तुम  भी  जरुर  रोई  होगी  !

चाहा  मैंने  जितना  मन  को
पर  दिया  न  तूने मुझे  सहारा ;
जीत  की  खुशफहमी  में  ही 
सब  कुछ  आज  मैंने  हारा !
हार  मेरी  ये  तेरी  भी  है 
यही  सोच  न  सोई  होगी,
दिखा  नहीं  ज़माने  को  पर 
तुम  भी  जरुर  रोई  होगी  !


मेरा  गिरना  ऐसा  न  था  की
गिर  के  फिर  मैं  संभल  न  पाता;
हाथ  दिए  थे  सबने  मुझको 
फिर  हाथ  तेरा  क्यों  मिल  न  पता  !
खोया  नहीं  किसी  ने  कुछ  भी
तुमने  जरूर खोई  होगी ,
दिखा  नहीं  ज़माने  को  पर 
तुम  भी  जरुर  रोई  होगी  !


टूटा  नहीं  जब  मैं  कभी  था 
नहीं  कभी खुदको  मुझमे  देखा ;
आज  टूटकर  हज़ार  हुआ  हूँ 
क्या  करोगी  अब   भी  अनदेखा  ?
देख  झांककर  मुझे  अभी  भी
हर  तुकडे  में  तुम्ही  पिरोई  होगी ,
दिखा  नहीं  ज़माने  को  पर 
तुम  भी  जरुर  रोई  होगी  !

 

Monday, February 6, 2012

अहोरात्रि साधना

अस्ताचलगामी सूर्य को
कौन करता है नमन ?
हार कर जाता है वो
रात भर सागर के शरण
वहां जल में जल कर
न जाने क्या तेज पाता?
होते ही प्रभात
हर नर - नारी
उसको सर नवाता !

Friday, February 3, 2012

रोने वाला ही गाता है

(Sharing this poem I read long back in my text book. Not sure but I think its written by Gopal Das Neeraj)

रोने वाला ही गाता है
मधु-विष हैं दोनों जीवन में
दोनों मिलते जीवन क्रम में
पर विष पाने पर पहले
मधु मूल्य अरे कुछ बढ़ जाता है
रोने वाला ही गाता है

प्राणों की वर्तिका बनाकर
ओढ़ तिमिर की काली चादर
जलने वाला दीपक ही तो
जग का तिमिर मिटा पाता है
रोने वाला ही गाता है

अरे प्रकृति का यही नियम है
रोदन के पीछे गायन है
पहले रोया करता है नभ
फिर पीछे इन्द्र-धनुष छाता है
रोने वाला ही गाता है