Monday, August 6, 2018

अचंभित
--------------


कहानियों को सुन लो
या,
सुने हुए से कहानी बुन लो
बात एक ही है बंधू !

उलझे पात्र और ताने बाने
या,
ताने बाने को पात्र लगे सुलझाने
हालात एक ही है बंधू !

भक्तों से भगवान की बात
या,
भगवान से भक्त संवाद
जज्बात एक ही है बंधू !

तुम से हारा मैं
या,
"मैं" से हारे तुम
मात एक ही है बंधू !

प्राचीन कथा में अर्वाचीन बातें
या,
अर्वाचीन बही के प्राचीन खाते
जमात एक ही है बंधू !

निष्प्रयोजन क्यों
पृथक करते हो ?
सत्य को अनजाने में
मिथक करते हो ;
संभलो कि,
विचारों के
झंझावात एक ही है बंधू !


                  - श्याम प्रकाश झा (६ अगस्त  २०१८ )


Wednesday, January 17, 2018

बेटियों के लिए विशेष


लड़की
-------

उम्मीदों के झरोखे से ताकती है लड़की
बाहर की सर्द हवा से काँपती है लड़की;
हिचक हिचक कर अक्सर सकुचाती हुई
अपनी हुनर को यदा कदा झाँपती है लड़की।

भाव और प्रभाव की अजब सम्भावना लिए
समाज में बने मूर्तखण्डों के बीचोबीच;
अनंत गणना वाले मापदंड से कदाचित
शून्य की ऊंचाइयों को नापती है लड़की।

सदियों पुराने व्याख्यायित बाधा दौड़ में
सरपट भागते, गिरते-उठते उसी होड़ में;
स्पर्धा की जीजिविषा हृदय में कैद किये
तेज सांसे जीत कर हाँफती है लड़की।

बहुत थोड़े जगह में थोड़ा बहुत प्रबंध कर
बनते बिगड़ते, टूटते जुड़ते सम्बन्ध पर;
पल भर मायूस, क्षण में पुलकित होकर
सृजन के उपले भी थांपती है लड़की।


                            - श्याम प्रकाश झा (१७ जनवरी २०१८ )



Thursday, January 4, 2018


विश्वास
----------

मुसाफिरों के ऊपर से आज रास्ते चल दिए ?
समस्या बन के उभरे थे उन्होंने ऐसे हल दिए;
उँट को पीठ पर लाद तुम सरपट चलते रहे
नामुरादों के बोल ने जाने कैसे थे बल दिए!

दोपहर से पहले ही जैसे रवि ढल गया
सहेज के रखा हुआ कैसे छवि मचल गया;
परत दर परत कलई खुलती ही गयी
आग में हाथ डाला सो बस जल गया !

पांडव और कौरव तो बस पहचान है
दोनों तरफ एक ही सोच विद्यमान है ;
धन से बनती बिगड़ती है उनकी समझ
कल तुम अकड़े थे आज वो मचल गया !

चौंक कर तुम अपने को बहलाते हो अब
भौंक कर अपनी ही व्यथा गाते गजब ;
अपने सयाने होने का तुम्हें दम्भ था
डेढ़ सयाना तुम्हें आगे से छल गया !

उपले में छक कर देसी घी पिलाते रहे 
व्यर्थ में तुम वीर गाथा गुनगुनाते रहे 
औकात से फ़ाज़िल उम्मीद गटक क्यों लिए 
उदर ने करवट ली और जी मचल गया !

ये तेरा धर्म था और तेरा ही युद्ध था
आंदोलन तो बस स्वघोषित शुद्ध था
सड़को पर फेंके गर्म शब्द फांकते रहे
क्या हुआ जो जरा सा मुंह जल गया !

                     श्याम प्रकाश  झा


         असमंजस
------------------------
 
उस पहल से इस पहल तक
उस महल से इस महल तक
उस चहल से इस चहल तक

न तुम बदले, न हम बदले
बस वक़्त ही बदला है
अनायास ही फिसला है।

उस पहर  से इस पहर तक
उस सफर से इस सफर तक
उस ठहर से इस ठहर तक

न तुम बदले, न हम बदले
बस वक़्त ही बदला है
अनायास ही फिसला है।

उस भाव से इस भाव तक
उस पड़ाव से इस पड़ाव तक
उस स्वाभाव से इस स्वाभाव तक

न तुम बदले, न हम बदले
बस वक़्त ही बदला है
अनायास ही फिसला है।

उस चहक से इस चहक तक
उस खनक से इस खनक तक
उस झिझक से इस झिझक तक

न तुम बदले, न हम बदले
बस वक़्त ही बदला है
अनायास ही फिसला है।

उस कथा से इस कथा तक
उस व्यथा से इस व्यथा तक
उस पता से इस पता तक

न तुम बदले, न हम बदले
बस वक़्त ही बदला है
अनायास ही फिसला है।