Saturday, August 24, 2013

लकीरें हथेली पर

लकीरें हथेली पर
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हथेली की लकीरों पर,
चलते रहोगे उम्र भर
बड़े सधक चालक हो.…  !

वो लकीरें,
जो खिंची हुई है जन्म से
तुम्हारी हथेली पर;
और
शायद बिलकुल स्थिर है;
या बदलती है अपनी जगह
सूई की नोक भर से भी कम
बिना तुम्हारी जानकारी के !

वो लकीरें
जो कटती पिटती है
अन्य लकीरों से;
कई जगह,
सैकड़ो बार ,
बिल्कुल मूक होकर !

वो लकीरें
जो सीधी नहीं वरण
खिंची हैं;
टेढ़ी-मेढ़ी और तिरछी,
उबड़ खाबड़ धरातल पर !

तुम रास्ता पीटते हो
उन्ही लकीरों पर,
और तय करते हो
सफ़र जिंदगी का ;
बस अपनी हथेली भर !


2 comments:

Sanjay Jadhav said...

सौ प्रतिशत सही !!

हथेली की लकीरों पर,
चलते रहोगे उम्र भर
बड़े सधक चालक हो.… !

लकीरे उनको नही होते, जीनके हाथ नही होते! जिंदगी तो उनकी भी चलती है

- संजय जाधव

Sanjay Jadhav said...

सौ प्रतिशत सही !!

हथेली की लकीरों पर,
चलते रहोगे उम्र भर
बड़े सधक चालक हो.… !

लकीरे उनको नही होते, जीनके हाथ नही होते! जिंदगी तो उनकी भी चलती है

- संजय