Thursday, August 15, 2013

स्वतंत्रता

झुण्ड में यदा-कदा नरमुंड दिख ही जाता है ,
अन्यथा बहुतायत में तो
बस यहाँ पर भेंड हैं !
धमकी के जवाब में दहाड़ कभी कभार श्रव्य है
अन्यथा रंग रोगन किये
ज्यादा तो कागज़ी शेर हैं !
आत्मा छाती से नोचकर धूल धूसरित कर रखा है
एक दो के पास बची है रीढ़
बाकी तो धरा पर ढेर हैं !
उम्मीद की किरणें छिटक कर अब कहाँ चमकती है
स्वतंत्र कब होगी किरणें
और कितने समय की देर है ?

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