Saturday, January 13, 2024

मून दाय (मैथिली कथा )


हुनकर असली नाम चंद्रकला छलय मुदा बाप दुलार स मून दाय कहय छलखिन्ह। मून दाय के बाप मास्टर साहब जयराम मिसिर दू भाय के भैय्यारी में पैघ छलाह आ मून दाय परिवारक पहिल धी; से जहिना बाप के ओ दुलारू बेटी छलीह , ओहिना पित्ती जयधाम मिसिर सेहो भतीजी के बड्ड मानय छलखिन्ह। मून दाय जखन दू सालक अवस्था में प्रवेश केलैन्हि, छोटका भाय के जनम भेलय। पीठ पर भाय के जनम के बाद पूरा परिवार मून दाय के भागवंत घोषित कय देलकय आ हुनकर दुलरपइन में और हिजाफा भय गेलय।
बाल्यावस्था में मून दाय एकबेर बाप माय संगे एकटा छोट छिन्ह मेला देखय लेल गेलीह आ ओतय हुनका एकटा खिलौना के दोकान पर मुंह चिढाबय वाला नटुआ बड्ड पसिन्न पड़लैन्हि। नटुआ ओना ठीक ठाक खिलौना रहय मुदा जयराम बाबू के किया नय किया ओकर मुंह चिढ़बैत बनावट नीक नय लगलय से ओ बेटी के पोल्हाबय लगलाह जे कोनो और खिलौना किन ले। मून दाय के वैह नटुआ चाही छलैन्हि से ओ पहिने बालरोदन के सहारा लइत भोकाइर पारि कानय लगलीह आ बाद में ओहिठाम दोकानक सामने जमीन पर ओंघरा के देह पटकय लगली। बाप जाबे नटुआ किन के हाथ में नय धय देलखिन, मून दाय के देह पटकनाय चालू रहलय।खैर साँझ में बापक कोरा में मून आ मूनक कोरा में खिलौना संगे परिवार घर घुरि एलय। ओहि दिन से दिन-राति ओ नटुआ आब मून दाय के कोरा में रहैत छल। मून दाय ओहि खिलौना से भरि दिन खेलाइत रहैत छलीह आ नटुआ जेना मुंह बना बना के लोग सब के चिढेनय सेहो शुरू कय देलखिन्ह ।
बाल्यावस्था से कोमलावस्था में अबैत-अबैत मून दाय में एकटा विचित्र आदैत के प्रवेश भय गेलय। ओ पैघ छोट केकरो मुंहे लागल बिना सोचने बुझने जवाब देबय लगलीह आ लोग सब के मजाक उड़ाबय में आनंद प्राप्त करय लगलीह। जे कोनो मौका भेटय त मुंह चिढ़ा दैत छलखिन आकि मुंह सेहो दुइस दैत छलखिन। धीरे-धीरे पूरा इलाका में मून दाय दुलरबताह आ अगिलकंठ के रूप में प्रसिद्ध भय गेलीह। माय कहियो कहियो तमसा के कहि दैत छलखिन जे बुच्ची अही सब ख़राब आदैत के कारण हमरा तोहर ससुर में बास भेनाय मोसकिल लागैत अछि मुदा बाप लेल मून दाय के आदैत नेनपन से बेसी किच्छो नय छलय। जयराम बाबू निश्चिन्त छलाह जे पैघ होइत होइत मून दाय के आदति सब सुधरि जेतय।
मून दाय के माय बाप के बड्ड सेहन्ता रहय जे एकटा आउर संतानक प्राप्ति होयतैन्हि मुदा महादेव के कतेको जल चढबय के बाबजूद हुनका सब के लम्बा टाइम इंतज़ार कर' पड़लैन्हि। महादेव प्रसन्न भेलखिन मुदा तखन जखन मून दाय बारह बरख के छलीह आ छोटका भाय दस बरखक। एकटा बेटी के आउर प्राप्ति होइत देरी जयराम बाबू आ हुनकर कनिया दूनू प्राणी बड्ड प्रसन्न भेलाह आ देवघर जाय के बाबा के दरबार में हाजिरी देलखिन। कनिये दिन में मून दाय के माय अपन नैहरा आ सासुर में स्वजन सबके सामने खुश भय के घोषित कय देलखिन जे मून जखन सासुर जायत त हमरा सहारा हमर यैह बेटी बनत। छोटकी बेटी के नाम राखल गेलय जयंती आ जे जन्म मास जून रहय त मास्टर साहब ओकरा दुलार सँ जून दाय कहि के सोर पारय लगलाह। मून दाय सेहो जयंती के आगमन सँ बड्ड खुश रहैथ आ दिन भरि छोट जन्मौती बहिन के सेवा में माय संगे लागि गेलीह। जहन जयंती कनिये छेटगर भेलीह , दिन भरि मून दय ओकरे खाय पियय , कपडा - लत्ता , नहेने धोअने के बियौंत में लागल रहैत छलीह आ जतय जाय छलीह , जयंती कोरे में रहैत छलय।
अहि बीच में छोट भाय जयधाम मिसिर के टाटानगर में एकटा नीक नौकरी भेट गेलै आ हुनकर ब्याह सेहो संपन्न भय गेलय। ब्याह के बाद जयधाम अपन पत्नी संग टाटानगर में रहय लगलाह। कालांतर में हुनका एकटा बेटा भेलैन्हि आ जखन जयधाम के पुत्र मूरनक योग्य भेलय , मून दाय तेरह - चौदह साल के छलीह आ माय बाप संगे मूरन देखय लेल टाटानगर गेलीह। ओहि दौरान एकदिन पित्तीयाइन मूरनक उपलक्ष में बच्चा लेल अपन नैहर से आयल कपडा-लत्ता, गहना-गुड़िया, मर - मिठाई सब के जोश सहित पूरा परिवार समक्ष प्रदर्शन करय लगलीह त जयंती के कोरा में लेनेह समानक अवलोकन करैत मून दाय के भारक समान कम बुझेलय। ओ कहलखिन , "काकी, भार त ओना ठीके - ठाक छय मुदा नानाजी कनिये कँजूसी कय देलखिन। हमरा सब लेल कपडा लत्ता कतय छय ? जौं घरबैया सब लेल कपड़ा लत्ता नय त हमरा बुझना इ भार दरिद्राहा भार अछि। "
नैहर के खीद्दाँस सुनैत देरी पित्तीयाइन के तामस ऐडी से टिकासन धरि चढ़ि गेलय। मुदा ओ अपना के संतुलित करैत बजलीह,"बुच्ची एहेन बोल किया बजैत छी? उचितवक्ता बननाय नीक गप मुदा चुप रहनाय सेहो सीखू। चारि - छः साल में अहाँ केर ब्याह होयत। एना जे केकरो किच्छो कहबय त हम ने सुनि लेलहुँ , सासुर वाला नय सुनत। "
मून दाय केकरो सँ बात में बिना जीतने रहि नय सकैत छलीह। तुरत जवाब देलखिन "काकी हम कोनो अहाँ के कि कक्का के कमाइल खाइत छी जे अहाँ के कहला पर बाजब आ कि अहाँ के कहला पर चुप रहब ? हम अहाँ के बात किया मानब? जिनकर कमाइल खाइत छियन्हि ओ किछु कहतय नय छैथ, ....... अहाँ के छी हमरा किच्छो कहय वाला? "
एतेक कहैत देरी , मून दाय के माय बेटी के मुंह दाबने ओहिठाम से दोसर कोठली में घीच के लय गेलीह । एकसर में बेटी के बुझबय के कोशिश केलखिन्ह मुदा मून दाय हुनकर बात कतेक आत्मसात केलैन्हि से कहनाय आ बूझनाय मोसकिल गप रहय।
अहि घटना के बाद चारि साल तक मून दाय के पित्तीयाइन संगे गप्प बंद रहलय आ जखन मून दाय ब्याहक उपरांत सासुर जाइत छलीह, पित्तीयाइन पहिल बेर विदागरी के टाइम पर हुनका टोकलखिन।
नेहरा सॅ विदा होइत काल माय चौल्ह केलखिन "मून, सांठ में नटुआ वला खिलौना दय दियउ ?" मून कहलखिन," नय। अहिठाम रहय दही, जयंती खेलेतय ।" ब्याह के बाद शायद मून दाय के बुझेलय जे आब हुनकर अवस्था नटुआ वला खिलौना संगे खेलाय लायक नय रहि गेल छलय।आकि सासुर में कियो कनिया के हाथ में बच्चा वला खिलौना देख के हँसतय, से आशंका रहय। कारण कोनो रहउ , मून अपन खिलौना से सेहो विदा ओहि दिन लय लेलैन्हि। ओहि दिन मून के अपन खिलौना से बेसी माय - बाप , भाय - बहिन के संग छूटय के कारण कोढ फाटल जैत रहय।
मून दाय के विदागरी के बाद, माय मून दाय के सबसे पुरान आ नीक लगय वाला नटुआ के बेटी बला कोठली के दुछत्ती पर रखवा देलखिन। जून दाय पहिने कनि दिन बड़की बहिन के लेल जखन तखन खूब घाना पसारलैन्हि मुदा माय बाप के बुझाबय के परिणाम स्वरुप धीरे धीरे दू चारि मास में सामान्य भेलीह आ आब मूनक जगह जून दाय अपन माय के आगाँ पाँछा रहय लगलीह आ जहिना माय सोचने छलखिन ओहिना मायक जिंदगी में आयल खालीपन के भरि देलखिन।
मून दाय के सासुर प्रवास सामान्य ढंग से शुरू भेलय। मुदा कनिये दिन में आदति अनुसार हुनकर मुँह छुटय लगलैन्हि। सासुर में एकबेर जखन हुनकर मुंह सॅ साउस के मुंह लागल ओल सन बोल निकललय आ हुनका कमा के खुआबय बला घरवाला जीतेन्द्र ठाकुर कोनटा में ल' जा क' आंखि देखा के कहलखिन जे अहि तरह के वेवहार अहिठाम नय चलत त मून दाय सकपका गेलीह। आय तक नैहर में कियो एना सोझ गप कहि के दमसेने नय रहय। ओकर बाद सॅ मून दाय अपन मुँह पर जेना जाबी लगा लेलैन्हि आ कहियो सासुर में लक्ष्मण रेखा लांघय के कोसिस नय केलैन्हि।अय हिसाब से देखल जाउ त मून दाय अपन पितियाईंन के चारि बरख पूर्व सत्ते गप कहने छलखिन।
कालांतर में मून दाय अपन पतिदेव संग हुनकर नौकरी लेल रांची चलि गेलीह आ ओहिठाम अपन धिया पुता आ गृहस्थी में व्यस्त भय गेलीह। बीच बीच में नैहर आ सासुर एनाय जेनाय होइत रहलय।
रांची में मून दाय के अपेकता हुनकर मोहल्ला में रहय वाली समतुरिया बिंदू स भेलय जे हुनकर अपने नैहर दिस के छलीह। अपनत्व ततेक बढ़लै जे कनिये दिन में दुनू गोटा एक दूसरा के घर तरकारी तीमन लेनेह आ नय त ओहिना चाय पीबय लेल आ गप लड़बै लेल बेरमबेर आबय जाय लगलीह। बिंदु आ हुनकर पतिदेव अमर बाबू संगे छोटकी बहिन सेहो रांची डेरा पर रहय छलय जे मून दाय के देखय -सुनय , बाजय -भूकय में बड्ड पसिन्न परय छलय। बिंदु के सास ससुर आब दुनिया में नय छलाह आ ओ भविष्य में ननैदक ब्याह लेल चिंतित रहैत छलीह। जखने हुनका पता चललय जे मून दाय के छोटका भाय नीक पढय लिखय छय आ कनिये दिन में ओ ब्याहक योग्य भ ' जेतय ,बिंदु के वेवहार में मून दाय के परिवार लेल मिठास आउर बढ़ि गेलय। ओना मून दाय अपने मोने मोन सोचि के पहिने से बैसल छलीह जे जखन हुनकर छोट भाय के ब्याहक गप उखड़तय, ओ अपन पिताजी के आगाँ बढ़ि के ई कथा करबाक लेल मना लेथिन्ह किया त लड़की सुन्नर छय , सुशील छय , पढ़ल लिखल छय आ सबसे पैघ गप जे ओ हुनकर प्रिय सखी बिंदु के ननैद छय।
ग्रेजुएट होय के कनि दिन बाद , मून दाय के छोट भाय सूर्यकांत बैंक में क्लर्क पद लेल चयनित भेलाह आ पोस्टिंग सेहो अपने शहर दड़िभंगा में भय गेलय। नौकरी शुरू कय के ठीक से स्थापित होइत होइत साल भरि निकलि गेलय आ ओकर उपरांत , जयकांत बाबू पुत्र के ब्याहक मोन बनेलैन्ह। मूनक ब्याह के नौ सालक बाद घर में फेर से एकटा ब्याहक संजोग बनैत रहय। पूरा परिवार ब्याह लेल उत्साहित रहय आ मून दाय त ' जेना अहि मौका के तकैत छलीह। पहिने ओ सब बातक ब्यौरा आ प्रस्तावित सम्बन्ध लेल एकटा चिट्ठी पिताश्री के पठौलैन्हि आ बाद में टिकट कटा दरभंगा नैहर आबि के सम्बन्धक बात चैल देलखिन्ह। अमर बाबू सेहो ब्याहक प्रस्ताव लेने डेरा पर एलखिन्ह। अंततः जयराम बाबू के सुपुत्र सूर्यकांत मिसिर के ब्याह अमरकांत चौधरी के बहिन लता चौधरी से भेनाय तय भेलय। ब्याह गाम में भेनाय आ बाराती दरभंगा से विदा भेनाय निश्चित भेलय। चतुर्थी के परात द्विरागमन के गप सेहो सुनिश्चित भेलय।
मून दाय लेल इ ब्याह महत्वपूर्ण रहय। एक त' ब्याह हुनके पहल पर ठीक भेल रहय। ओ घराती छलीह आ एक तरह से बाराती सेहो छलीह । ब्याहक इंतज़ाम आ द्विरागमन के सांठ में की केना हेतै , सब बात में अमर बाबू आ बिंदु मून दाय से परामर्श केलखिन्ह । हुनकर मोनक सब बात के ध्यान राखल गेलय। सांठ में लड़का के बहिन होय के खातिर मून दाय लेल जे एक पल्ला साडी देल गेलय ओ कनि महग हेबाक चाही एकर ध्यान बिंदु जरूर रखलखिन्ह।
खैर ब्याह नीक जेना संपन्न भेलय। बाराती के स्वागत सत्कार में अमर बाबू नीक खर्चा केलैन्हि आ कोनो कमी नय हुबय देलखिन। बाराती वापिस आबय के बाद मून दाय के पतिदेव नौकरी के व्यस्तता खातिर रांची विदा भय गेलाह आ मून दाय द्विरागमन देख के कनिया के परिछन के बाद दू चारि दिन नैहर में रहि के एकसर रांची जेतीह से निश्चित भेल रहय। चतुर्थी के बाद द्विरागमनक विदागरी भेलै आ नवका वर कनिया संगे अमर बाबू बहिनक सासुर भार लेने साँझ तक पहुँचलाह।
दोसर दिन भोरे भोर सर-सम्बन्धी, समांग जे कियो द्विरागमन लेल रुकल छलाह, सबके सामने में कनिया के नैहर से आयल भार आ ओहि में सांठल सामान के दालान पर प्रदर्शनी भेलय। ओना भार परिपूर्ण रहय मुदा वर पक्ष दिस से होय के कारण, दियाद के लोक सब आ अपन सम्बन्धी सब किछु मीन मेख निकालता से सुनिश्चित छलय। अमर बाबू मीमांसा सुनय लेल मानसिक रूप से पहिने तय्यार बैसल छलाह। मून दाय विचित्र स्थिति में छलीह। एक दिस भाय के सासुर से आयल सामान छलय त' दोसर दिस येहो बात रहय जे सांठ के सब सामान हुनके सहमति से कनिया वाला (आ हुनकर सखि बिंदु ) सजौने छलखिन्ह। जखन वर पक्ष के लोग सब एक एक टा चीजक व्याख्या आओर की कमी रहय, से विस्तार में कहि के भर्त्सना करय लागलखिन्ह त' मून दाय कनि काल मुँह पर जाबी लगेने रहलीह ।
चौदह सालक जयंती सांठ में वरक माय - बाप आ बहिन लेल आयल सामान में बेसी ध्यान लगाउने छलीह। हुनका इ बात पसिन्न नय एलय जे बड़की बहिन लेल बढियमका साडी आयल छल मुदा हुनका आ हुनकर माय बाप लेल मोन मुताबिक कपडा नय आयल रहय। अहि बात सँ बिदकल जून दाय सांठ में बान्हल एक एक सामान के खीद्दाँस करय लगलीह। भीतर के तामस ततेक तीव्र भेलय की खीद्दाँस करैत करैत ओ कनिया के घर परिवार , सर सम्बन्धी , भाय - भौज सब के भर्त्सना करय लगलीह। अमर बाबू जेना बहिनक सासुर में गारि सुनय लेल तय्यार बैसल छलाह से निर्विवाक रहलाह, कोनो उद्विग्नता के बिना , मुदा मून दाय सँ आब चुप नय रहल गेलय। ओ छोट बहिन के कहलखिन "बुच्ची तू एना आगि अंगोरा धधकल जेना किया करैत छैंह ? उमरि के हिसाब सँ जतबे बुझय छीह ततबे बाजय के चाही। अखन तोहर अवस्था नय भेलउ अहि सब चीज़ में बाजय बला। जो भीतर कोठली में जो। "
जयंती के अपने डेरा पर , नव पाहुन के सामने एतेक गप सुननाय अनसोहाँत लगलय। ओ तमतमाइत कहलकय "दीदी, हम कोनो अहाँ के, कि ठाकुरजी के कमाइल खाइत छी जे अहाँ के कहला पर बाजब आ कि अहाँ के कहला पर चुप रहब ? हम अहाँ के बात किया मानब? जिनकर कमाइल खाइत छियन्हि ओ किछु कहतय नय छैथ , अहाँ के छी हमरा किच्छो कहय वाला। " एतेक बात कहय के बाद जयंती मुंह सेहो ऐंठ देलकय।
उमरि में बड्ड छोट बहिन के मुँह लागल जवाब सुनि के मून दाय अवाक् रहि गेलीह । हुनका जयंती के ई वेवहार अनसोहाँत लगलय आ आय अपना के ओ शक्तिविहीन महसूस करय लगलीह। नैतिक समर्थन लेल एकबेर ओ सोफा पर बैसल कक्का आ पिताजी दिस आंखि कनटिया के तकलैन्हि त देखलैन्हि जे दुनू गोटा मुंह चोरा रहल छलाह। अमर बाबू कुर्सी पर बैसल सकदम छलाह। मुंह में हुनकर जीभ सुखाइत रहैन। दर दियाद सब सेहो चुप रहनाय उचित बुझ्लैन्हि। मून दाय के माय ओहुना भीतर कोनो काज में ओझरायल छलय, ओ ओतय नय छलीह । कतउ से समर्थन में कोनो वक्तव्य नय सुनि , मून दाय आनन् फानन में नोरायल आँखि लेने अपन कोठली दिस परेली। झटपट में ब्रीफ़केस निकालि कपड़ा सरियाबय लगलीह । ओना उपर सँ चेहरा शांतचित रखय के कोशिश करय छलीह मुदा मोन में विचारक ज्वार भाटा उठल रहय। मोने मोन सोचलैन्हि जे आब कहियो अहि दरबज्जा पर नय आयब। मिनट भरि में मून दाय अपना घर रांची जाय लेल सामान बैन्हि तय्यार भेलीह। कोठली से बाहर होइत काल अनचोक्के नजरि कोठली के दूछत्ती पर गेलैन्हि। हुनकर ओ पुरना खिलौना मेला वाला नटुआ कतेको साल से ओहिठाम राखल रहय। ओना धूल गर्दा से ओत प्रोत रहय मुदा ओहिना दांत निकालि हसैत मुंह चिढ़ा रहल छलय ।मून दाय धरफड़ा के आंखि नीचा दरबज्जा दिस कय , आंखि पोछैत आ आँचर सरियाबैत हाथ में ब्रीफ़केस लेने कोठली सै बाहर दलान दिस सँ घरक दरबज्जा दिस निकलि गेलीह।

टेनिया - लफुआ (मैथिली कथा )

वर्ष : उन्नैस सय छियासी

गाम : कोसी आ नेपाल के बगल वाला इलाका के कोनो गाम
भूमिका :
बीस वर्ष पूर्व, गामक दूटा दस-बारह वयस के छौरा चोरी के इल्जाम में मारि खाय से बचय लेल गाम से पहिने कहुना पटना पहुँचल आ फेर क्रमशः दिल्ली आ कलकत्ता के ट्रैन पकड़ि परा गेल छल। नाम छलय टोनी आ लफ्फू। प्रवासक दौरान जतय टोनी दिल्ली में पित्ती संग रहि के पंजाबी स्टाइल से माउस रान्हने सिखलक त लफ्फू माम संग बंगाली रसगुल्ला बनौने आ मिठका दही पउरे के कला कलकत्ते में सिखलक। कालांतर में जखन चोरी वला घटना के गौंवा सब बिसैर गेलय, दुनू दोस्त गाम आबि के, नबका बाजार में अगल बगल माउस-भात आ मिठाई के पैघ दोकान खोलने छल जे कि अखन वर्त्तमान काल में पूरा इलाका में प्रसिद्द रहय। टोनी से टोनिया आ टोनिया से टेनिया कहिया भेलय से गप बुझनाय भारी गप छय मुदा ओहि दरम्यान लफ्फू सेहो लफुआ कहाबय लागल छल ।बाजार भरि में की, पूरा परगन्ना में बसल आठ दस गाम में दुनू दोस्त के स्वादिष्ट खेनाइ आ मिठाई के खूब चर्चा रहय।
इ कथा के नायक नय त टेनिया अछि नय त लफुआ, मुदा कथा के अंत तक दुनू गोटा के विशेष भूमिका पाठकगण के जरूर बुझा जेतैन्हि ।
घटना क्रम - जाड़क भोर
जनवरी के महीना छल आ कुहेस लागल भोर। गामक लोग सब जाबे उठि के चाह पिबताह , ताबे भोरे भोर पूरा गाम में जेना हरबिर्रो मइच गेलय। गप्प ई पसरल रहय जे स्वर्गवासी मास्टर साहब के षोडसी बेटी कोनो विजातीय छौरा संगे उरहैर गेलय। आनन फानन में छोट छिन्ह भीड़ मास्टर साहब के दरबज्जा पर जमा भय गेल छलय। भीडक नेतृत्व बोल्गा बाबू करय छलाह। भीड़क मांग छलय जे मास्टर साहब के विधवा (बरहमपुर वाली) सबके सामने आबि इ उरल गपक स्पष्टीकरण दौथ आ बेटी के प्रस्तुत करौथ। बोल्गा बाबू गाम के सबसे मानल उचितवक्ता छथि। गप गढय में , गप पीबय में , गप सुनय में, गप सुँघय में , गप चिबबय में आ गप बजय में हुनकर परितर कियो नय कय सकैत छय। असली नाम राधाकांत मिश्र छैन्हि मुदा ओ दाढ़ी बुल्गानिन स्टाइल में रखय छैथि से सब लोग धीरे धीरे हुनका वोल्गा बाबू कहय लगलखिन। गाम भरि में ज्ञान बटय आ पंचायती के अलावा कोनो काज नय करैत छैथ। पूरा परगन्ना में हुनका समाजक आ देशक नियम कानून बुझय आ ओहि पर चलय वाला मनुख मानल जाइत छल। गाम में उठल कोनो झगड़ा झाँटी में पंचैती करय लेल या त हुनका हकार दय के बजाबल जाइत छलैन्हि नय त ओ अपने घोसिया जाइत छलाह।
घर के भीतर दरबज्जा खिड़की सब बन्न केने बरहमपुर वाली दुखी मोन डर आ आशंका संगे मूरि गोतने बैसल छलीह । हुनका जखने अपन बेटी के किरदानी पता चलनैन , ओ अपन एकटा हरबाहा के पहिने अपन नैहर दिस विदा कय देने छलखिन , अपन छोट भाय अमर बाबू के बजबय लेल। अमर बाबू खानदानी धनाढ्य छलाह जिनकर सैकड़ो बीघा खेती योग्य जमीन छलय आ बाद में पटना दिल्ली से लय के विदेश तक मखानक व्यापार में नीक नाम कमेने छलाह। गाड़ी घोडा के कोनो कमी नय छलैन्हि आ अपने बुलेट मोटरसाइकिल चलेनाय बड्ड पसिन्न छलैन्हि। दसेक साल पहिने बहिनोई मास्टर साहब के अकस्मात् निधन के बाद, अमर बाबू अपन जेठ विधवा बहिन लेल संकटमोचन छला आ बड़की दाय के कोनो समाद पर धरफड़ायल गाम अबैत छलाह। हाल फ़िलहाल में ओ अपन मैट्रिक पास भगिनी लेल कोनो योग्य वर के ताकय के सिलसिला में बहिनक सासुर बेसी आबैत जाइत रहैत छलाह।
दस बजैत-बजैत नय त भीड़ दरबज्जा पर सॅ टस मस भेलै आ नय बरहमपुर वाली बहरेली। बोल्गा बाबू के नेतृत्व में भीड़क आरोप प्रत्यारोप , मास्टर साहबक घर से भात बारय के प्रस्तावना, समाजक बदलैत स्वरुप , नबका जमाना के छौरा छौरी सबहक उछश्रृंखलता , बेटी के माथ पर बापक साया नय होय के दुष्प्रभाव , लड़की के नाना गामक नीच आचरणक कथा पिहानी सब चलैत रहलय। एक आध टा सज्जन बीच बीच में अपना डेरा जाय के अपन जरुरी काज सब कय के फेर से वापिस आबि जाइत छलाह गप्प भजय लेल, गप्प सुनय लेल। बोल्गा बाबू तीन घंटा धरि ठाढ़ रहलाह मुदा एक इंच हिलबो तक नय केलाह। समाज पर बड़का आफत जे आबि गेल रहय। हुनका सन आदमी जे आय किछु नय करतय त फेर के करतय ?
इ लियह। ग्यारह बजे अचानक से अमर बाबू अपना भगिनी के बुलेट पर बैसेने कतउ से अवतरित भेलाह। संग में एकटा दोसर मोटर साइकिल पर तीन टा और चेला चपाटी सेहो पहुँचलैह। दरबज्जा पर मोटर साइकिल लगा क, आ अपन भगिनी के घर के भीतर पठा के ओ भीड़ दिस मुखातिब होइत बोल्गा बाबू के नेता बुझैत बजलाह ,"प्रणाम बोल्गा बाबू। की हाल चाल यौ ? आय अहाँ सब एतेक गोटा से हमर बहिनक दरबज्जा पर किया अयलहुँ ?"
बोल्गा बाबू कनिये खिसियाइत बजलाह ,"अमर बाबू। अहाँ के गाम में इ कुकर्म सब होइत रहैत होयत। हमरा सब लेल इ कलंक अछि जे मास्टर साहब जेना महात्मा आदमी के कुमारि बेटी एकटा छौरा संगे भाइग जाय। छौड़ी बाहर बजबियौ आ पूछियौ जे कतय आ केकरा संगे गेल रहय ?"
अमर बाबू कनिये तमसाइत बजलाह ,"बोल्गा बाबू, अहाँ सम्मानित लोक छी आ बिना कोनो साक्ष्य के, बिना किछु बुझने, एहेन लांछन लगेनाइ अहाँ के शोभा नय दैत अछि।हम अपना संगे अपन भगिनी के कैल्हि राति एकटा नीक कथा लेल मातृक ल के गेल रही। आय ओकरा लड़का के बाप माय के देखबय बाद लय के अयलहुँ। "
दरअसल अमर बाबू गाम दिस आबैत काल रास्ता भैर सोचैत सोचैत, भगिनी के गायब होय के व्याख्या लेल, एकटा नब कहानी गढ़ने छलाह। भीड़ के अमर बाबू के कहानी पर कोनो विश्वास नय छलय। मुदा बोल्गा बाबू छोरि केकरो अतेक साहसो नय रहय जे अमर बाबू जेकाँ पैरुख वाला लोगक बात के काटि के हुनकर विरोध करितैह। भीड़ में चाइर टा त एहेन सज्जन छलाह जे पहिने कोनो न कोनो काज से अमर बाबू सँ कृपान्वित भेल छलाह। मुदा बोल्गा बाबू त बोल्गा बाबू छैथ। बिना एक एक टा चीज फरछइने कोना मानि लेताह ? कनि काल तक वाद प्रतिवादक दौर अहिना चलैत रहलय।
बारह बजैत बजैत अमर बाबू कनिये आवाज़ कड़ा केलन्हि "हयौ बोल्गा बाबू। अहाँ ओहिना बिना मतलबक बात के तिरैत छी। अहाँ के कोनो काज नय हैत मुदा हमरा अछि। अखन हमरा लागल अछि भूख। आय हम परतैर के आयल छलहुँ जे बाज़ार पर टेनिया दोकानक माउस भात खायब मुदा अहाँ एम्हर एहेन घाना पसारने छी जे पूरा मूड ख़राब भय गेल। एक त अहाँ कुतर्क में लागल छी दोसर जे एतबो नय बुझा रहल अछि जे सामने वाला भूखल पयासाल छय, दूर से आयल छय आ ओकर की हाल छय। "
अमर बाबू के आवाज़ के कड़कता सुनि बोल्गा बाबू कनिये सकदम में आबि गेलाह। भीड़ में सेहो समर्थन कम भेल जाइत छलैन्हि। किच्छो फुरेबे नय केलैन्हि। मोने मोन अपना संग आयल लोग सब पर तामस सेहो उठैत छलैन्ह जे बाकी के लोग किया बौक भेल छय। आ येहो डर होइत छलैन्ह जे अंत में कहीं सबटा दोष हुनके पर नय आबि जाय।
अमर बाबू व्यापारी आदमी छैथ। सामने वाला के स्थिति फट से बूझि जाइत छथिन्ह। ओ दोसर रास्ता पकड़लैन्ह । आवाज़ में कनिये मिठास आनैत घोषणा केलखिन,"हम जा रहल छी बजार पर खाय लेल। बोल्गा बाबू अहाँ एकटा काज करू। हमरा संगे बजार पर भोजन करय लेल चलू। भोजन सेहो हेतय आ गप्प सप , बहस सेहो हेतय। आ जे ई बात स्वीकार नय अछि त ठाढ़ रहू दरबज्जा पर जाबे हम भोजन कय के आबैत छी बजार सँ। "
बोल्गा बाबू असमंजस में छलाह। हुनकर मनःस्थिति बूझि अमर बाबू हाथ पकैड़ बोल्गा बाबू के अपना बुलेट पर पाछाँ बैसा क अपन दू टा चमचा संगे बजार दिस विदा भेलाह। माउस भातक लोभ में भीड़ सॅ चारि टा महानुभाव सेहो अपना घर से साइकिल लेने बजार दिस विदा भेलाह। कनि काल लेल सबहक स्मरण सॅ छौड़ी के भगनाय वाला गप्प उतरि गेल छलय।
टेनिया माउस भात रान्हय में उस्ताद छल। अमर बाबू ओकर रेगुलर ग्राहक छलखिन, खुश होय पर पांच टका ऊपर स दैत छलखिन। ओ हुनका देखैत देरी , सब गोटा लेल ठीक से टेबल कुर्सी लगौलक , बढ़िया से सैंत के थारी में भात आ बड़का कटोरी में मउसक वेवस्था कयलक। मउसक गंध सॅ सब गोटा के स्मरण शक्ति क्षीण भेल जाइत रहय। कनि काल चुप्पी संग खाइत रहय के बाद , खेनाय संग बोल्गा बाबू मुद्दा पर आबि गेलाह। हुनकर बुद्धि अमर बाबू के व्याख्या मानय लेल एकदम्मे तय्यार नय छलैन्ह। अमर बाबू घाम पसीना पोछैत , माउस भात खाइत , हुनकर सब बातक जवाब दैत रहलखिन।
खेनाय के बीच में अचानक एकटा नव आगंतुक आबि के अमर बाबू के नमस्कार केलखिन आ आगाँ बढ़ि गेलाह। बोल्गा बाबू के जेना आँखि आ कान ठाढ़ भय गेलैन्ह। पुछलखिन "अमर बाबू। अहाँ इ सज्जन के केना चिन्हैत छियय ? हमर एकटा जमीनक मुकदमा हिनका संगे चलि रहल अछि। "
अमर बाबू के एकटा और मौका अपना दिस अबैत देखेलैन्ह। ओ मौका के लपकैत बजलाह ,"त अहाँ हमरा कहियो त कहितौं। अहाँ अमर के अप्पन लोग बुझबे नय केलियय। " आ बजैत बजैत मुंह सेहो बना लेलैन्ह। फेर कनि रुकि के कहलखिन ,"अहाँ चिंता जुनि करू। अहाँ अप्पन इ काज भेले टा बूझियौ। आब अहाँ के ई मुद्दा जल्दिये फरिया जायत। "
बोल्गा बाबू के मोन प्रसन्न भेलैन्ह। मुकदमा पांच साल से बेसी टाइम सँ चलैत छलैन्ह। अमर बाबू के गप्प सुनय के बाद अचानक मोन हल्लुक लागय लगलैन्ह आ खेनाय में सुवाद और बढ़ि गेल छलैन्ह। आब हुनका अमर बाबू के कहानी पर धीरे धीरे बेसी विश्वास हुबय लागल छलैन्ह। एक एक कौर के बाद , हुनकर बहसक आ बततिर्री क्षमता क्षीण भेल जाइत छलैन्ह। बाकी लोग त अहुना मूरी गोतने खाइते छलाह। जीह पर ढनमनाइत मउसक सुवाद, जीहक स्वर उत्पति वला प्रकृति के गरदनिया देने जाइत रहय।
अमर बाबू के जिद्द पर टेनिया बोल्गा बाबू के बाटी में एकबेर अउर गरमा गरम चुसता परसि देलकय।बाटी सॅ लय के चुसता चुसैत-चुसैत जे कनि मनि संदेह बोल्गा बाबू के मोन में रैह गेल छलैन्ह, सेहो शनैः शनैः बिला गेल रहय। भरि इच्छा भोजनक बाद जखन ढकार लैत सब गोटा टेनिया के होटल से बहरेलाह त अमर बाबू निश्चिन्त छलाह जे आब समस्या टैल गेल अछि मुदा ओ पक्का खेलाड़ी आदमी छैथ। समस्या के समूल नष्ट केनाय जरुरी बुझैत छथि। पानक दोकान दिस बढ़ैत सब गोटा के कहलखिन "अहाँ सब एना किया धड़फड़ायल छी ? टेनिया दोकान के माउस भात खाय के बाद जे लफुआ अहिठामक मिठका दही आ रसगुल्ला जे नय खेलक से की खेलक। " मोन त सबके होइते रहय। उपरे ऊपर हुनका सब के कनि मनि मना करय के बाद, अमर बाबू जिद्द कय के सब गोटा के लफुआक दोकान लय गेलाह आ भरि इच्छा दही रसगुल्ला के भक्षण करबयलखिन। बोल्गा बाबू संग गामक इ पांच छह गोटा के त आय जेना भोज भातक लाटरी लागि गेल छलैन्ह। मिष्ठान भक्षणक बाद बिना पान के कोना होइतय ? से फेर झुण्ड पान दोकान दिस विदा भेल। पान खाइत-खाइत एक स्वर में सब गोटा भोरक घटना के सन्दर्भ में अमर बाबू के व्याख्यान पर सहमति देखाबय लगलाह आ गामक जे लोग सब ओतय नय छलाह हुनका सबके अहि उत्पन्न भ्रम लेल दोषारोपित करय लगलाह। एक सज्जन त उत्साहित होइत अमर बाबू के भगिनी के बड्ड सुशील, सुन्दर आ पढाई चन्सगर धिया बतबइत ओकरा लेल दू टा नीक कथा सेहो बता देलखिन।
 
साँझ होइत-होइत गाम में पसरल भोरक बात बजार में पसरल टेनिया के मउसक आ लफुआ के दही रसगुल्ला के सुवाद में डूबि के पूर्णतः रूप सँ बिला गेल रहय। अंत में जखन सब गोटा उदर संतुष्टि आ पान भक्षण केर बाद थै थै भय गेलाह , सब के नमस्कार पाती करय के उपरांत अमर बाबू अपना बहिन लेल एकटा सन्देश लिख बोल्गा बाबू के हाथ में देलखिन आ मोटर साइकिल स्टार्ट कय अपना गाम दिस निश्चिन्त भय के विदा भेलाह। गामक लोग पैदल आ साइकिल पर बैस अपना अपना घर दिस रस्ता पकड़लैन्ह।
एम्हर टेनिया-लफुआ के इ नय बुझल छलय जे ओकरा दुनू के कारण गाम पर आय एकटा बड़का फसाद होइत होइत रुकि गेल रहय ।

Thursday, October 5, 2023

एद बेद, छूरी छेद (मैथिली कथा )

सुखिया नेनपनसँ अपनाकेँ बड्ड भागवंत बुझैत छल। नेनपनमे जखन अपन संगी सब संगे ओ चोर पुलिस खेलाइत छल तँ एद बेद छूरी छेद वाला छोट कविता में "बन्दूक" शब्द आबैत आबैत कहियो बजनिहारकेँ अंगुरी ओकरा ऊपर नै आबैत छलै आ कहियो ओकरा पुलिस बनैकेँ जरूरते नै पड़लै। ओकरा छोड़ि ओकर सब दोस्त कहियो ने कहियो पुलिस जरूर बनलै मुदा सुखिया सदिखन चोर बनि नुकाइत रहल। धीरे धीरे सुखिया लेल ई दस टा शब्द भागवंत हेबाक अमोघ बाण बनि गेलै। ओकर पूरा नेनपन ऐ दस शब्दक बनल पंक्तिक एम्हर ओम्हर घुमैत रहलै।
एद बेद, छूरी छेद , लक्कड़ धूम, आधा तुम , बम बन्दूक।
सुखिया आ ओकर पांच टा आर भाय जन्मजात दरिद्र छल। पढ़नाई लिखनाईसँ तँ कहियो भेंट तक नै भेलै आ छोट-छीन काज करैत करैत अन्तोगत्वा सब भैय्यारी गामसँ बाजार धरि रिक्शा चलाबए लागल। सुखिया आ ओकर छोट पैघ भाय सब बापक बनाओल एक्के कमराक घरमे रहैत छल आ केकरो बिआह नै भेल छलै। स्वभावसँ सब भाय कोंढ़ि छल मुदा मजबूरीमे रिक्सा चला कए जीवन यापन करैत छल।सब दिन साँझमे दिन भरिक मेहनतक बाद जखन सुखिया ताड़ी पीबै लेल पासी टोल जाएत रहै तँ एद बेद, छूरी छेद क’ कए तै करैत छल जे आई कोन दोकानसँ ताड़ी पीयल जाय। आ संजोग देखियौ जे ओ जै दोकान में जा क’ ताड़ी पिबै, ओकरा ओही दोकानक ताड़ीक सुआद आ नशा ओई दिन उत्तम लगैत छल। दिनों दिन सुखियाकेँ अपना भागवंत होइपर आ ओ दस शब्दक तिलिस्मपर बेसी बिस्वास हुए लगलै।
ऐ साल गर्मी जबरदस्त भेलै आ सुखियाक टिनक छत वाला रूम बड्ड गरम भ’ जाइत छलै। मोहल्लाक बड़ बुजुर्ग कहैत छलखिन जे ऐ बेर पानि सेहो खूब पड़तै। पांचो भायकेँ बुझल छलै जे टिनक छतक मरमत्ती बेस जरुरी छै नै तँ बीचे भादोमे छत खैसियो सकैत छै। एक दिन सबसँ पैघ भाय बेचन पांचो भायकेँ साँझमे बैसेलक आ ऐ मुद्दापर चर्चा शुरू केलक।
बेचन बाजल , "बाउ हौ। तोरा सबकेँ तँ बुझले छह जे अपना रूमक टिनही छत बड्ड पुरान छै आ जे ऐ बेर मरम्मत नै हेतै तँ खैसियो सकैत छै। हमरा बुझने एकर तुरंत मरम्मत हेबाक चाही। "
दुखिया जे सबसे छोट छल ओ तुरंत बाजल ,"भाय, हम तोहर गप मानैत छी; मुदा खर्चा कतेक हेतै ? हमरा लग एक्को टा पाई कौड़ी तँ जमा अछि नै। पहिने बता देबह तँ हम एखनेसँ जमा करय लागब। "
एक-एक क’ कए सब भाय अप्पन विचार देलक आ सम्मति रहै जे छतक मरम्मति तँ हेबाके चाही। मुदा सबहक जिज्ञासा खर्चाक बाबति छलै।
बेचन अप्पन जिनगी भरिक अनुभवक जोर पर बाजल ,"हमरा बुझने अगर हम सब काज ठेकेदारसँ कराबी तँ सब आदमीकेँ दू दू हज़ार रुपैया निकालय पड़तह।"
दू हज़ार रुपैया सब भाय लेल पैघ राशि छलै। दू हज़ार शब्दक बोझसँ कमरामे गुम्मी पसरि गेलै। कनी काल बाद बेचन फेर बाजल ,"नै तँ एकटा और भांज लगा सकैत छी। सब गोटा एक-एक हजारक बेवस्था करी टीनक चदरा कीनै लेल आ छत दुरुस्ती हम सब भाय मिल क’ अपने कए लेब। मेहनति अप्पन सबहक आ सामान बाजारसँ। "
ई जोगाड़ सबकेँ नीक लागलै। बेचनकेँ अपना बड्ड बुझनुक होइ पर गर्व महसूस भेलै। ओ आओर जोशमे आबि क’ बाजल, "अपना सब एकटा आर भांज लगा सकैत छी। तेसर तरीका ई भ’ सकैत अछि जे कोनो तीन भाय दू - दू हज़ार टका दए दौ आ बाकी क’ तीन भाय अप्पन मेहनति लगाबै।"
बुधन बाजल,"ओना तँ ई उपाय सेहो अधलाह नै मुदा ऐ बातक फैसला कोना हेतै जे के पाय देतै आ के मेहनत करतै।"
अपनाकेँ जबरदस्त भागवंत मानै वाला सुखियाकेँ तेसर उपाय सबसँ नीक लगलै। ओ तुरंत बाजल,"हौ भैय्या। तीन आदमी जे पैसा देताह ओकर फैसला एद बेदसँ फटाकसँ भ’ सकैत छै।” सुखियाकेँ पूरा विश्वास छलै जे एद बेदमे पाय दै लेल ओकर नंबर अएबे नै करतै। ओ पूर्ण वाक शक्तिसँ तेसर उपायक समर्थनमे एद बेद वाला तरीका अपनाबै लेल जोर देबए लागल।
कनिये झगड़ा झंझट , वाद प्रतिवाद और खूब घेंघाउजक बाद सुखियाक सुझाव मानि लेल गेलै। बगलमे रहै वाला बुजुर्ग सत्ते भाय केँ एद बेद करबा लेल बजाओल गेल। निर्धारित प्रक्रियाक अनुरूप, सत्ते भाय मुंह दोसर दिस केने ठाढ़ रहलाह आ छओ भाई बेचन , बुधन , करमा , सुखिया , भोला आ दुखिया बिना कोनो क्रममे पंक्ति बना ठाढ़ भ’ गेल। लाइन तैयार होइत देरी सत्ते भाय घुमलाह आ बिना सोचने विचारने एक भाय पर हाथक तर्जनी आँगुर राखि शुरू केलैन्हि।
एद बेद, छूरी छेद , लक्कड़ धूम, आधा तुम , बम बन्दूक।
पहिल बेरमे बुधन धराएल। बेचारा मोन मसोसि क’ कोनटामे ठाढ़ भ’ गेल। सुखिया मोने मोन खुश रहै। ओकरा अपना भागवंत हेबाक पूर्ण विश्वास छलै। दोसर भायक चुनबाक प्रक्रिया शुरू भेलै। फेरसँ सत्ते भय दोसर दिस मुंह क’ कए ठाढ़ भेला आ बाँचल पांच भाय बिना कोनो क्रमकेँ पाँतिमे ठाढ़ भेल। ऐ बेरक प्रक्रियामे भोला फँसल। ओकरो मुंह लटैक गेलै आ कोनटामे जा क’ ओ ठाढ़ भ’ गेल। सुखिया मोने मोन आह्लादित होइत छल। चुपेचाप मोनमे गीत गुनगुनाबय लागल। तेसर आ अंतिम बेरक प्रक्रिया शुरू भेलै। सत्ते भायक हाथ एक एक क’ कए शब्द संगे एक व्यक्तिसँ दोसर व्यक्ति दिस जाएत रहल जाबत धरि "बन्दूक" शब्द हुनकर मुंहमे नै एलै।
ले बलैय्या। ऐ बेर सत्ते भायक आँगुर तँ सुखिया पर रुकलै। सुखियाक विश्वास नै भेलै। ओकरा आंखिक सामने जेना पूरा अन्हार भ’ गेलै। मोन झूस भ’ गेलै, मोनमे चलैत गीत आधेमे रुकि गेलै। ओकर मोन ई मानै लेल तैयारे नै रहै जे ओहो ऐ फटोफंदमे फँसि सकैत अछि। मुदा ओ किछु नै बाजल, जे बाजितै तँ पांचो भायसँ मारि खएते। से ओ मुनिहारि साँझमे चुपचाप घरसँ बाहर निकलि अप्पन रिक्शा दिस विदा भेल। आब सुखिया अन्हारोमे रिक्शा चलाओत , एक महीनामे दू हज़ार टका जे आब जमा करबाक रहै। रिक्शा दिस जाइत जाइत सुखिया अपन मोनकेँ बहलावैत सोचैत रहै, " जाय दहि , गर्मीमे छत ठीक करबाक काजो तँ नै करय पड़त।"