Friday, June 1, 2012

dikha nahi jamane ko par tum bhi jarur roi hogi !

दिखा  नहीं  ज़माने  को  पर 
तुम  भी  जरुर  रोई  होगी  !

चाहा  मैंने  जितना  मन  को
पर  दिया  न  तूने मुझे  सहारा ;
जीत  की  खुशफहमी  में  ही 
सब  कुछ  आज  मैंने  हारा !
हार  मेरी  ये  तेरी  भी  है 
यही  सोच  न  सोई  होगी,
दिखा  नहीं  ज़माने  को  पर 
तुम  भी  जरुर  रोई  होगी  !


मेरा  गिरना  ऐसा  न  था  की
गिर  के  फिर  मैं  संभल  न  पाता;
हाथ  दिए  थे  सबने  मुझको 
फिर  हाथ  तेरा  क्यों  मिल  न  पता  !
खोया  नहीं  किसी  ने  कुछ  भी
तुमने  जरूर खोई  होगी ,
दिखा  नहीं  ज़माने  को  पर 
तुम  भी  जरुर  रोई  होगी  !


टूटा  नहीं  जब  मैं  कभी  था 
नहीं  कभी खुदको  मुझमे  देखा ;
आज  टूटकर  हज़ार  हुआ  हूँ 
क्या  करोगी  अब   भी  अनदेखा  ?
देख  झांककर  मुझे  अभी  भी
हर  तुकडे  में  तुम्ही  पिरोई  होगी ,
दिखा  नहीं  ज़माने  को  पर 
तुम  भी  जरुर  रोई  होगी  !