Thursday, October 5, 2023

एद बेद, छूरी छेद (मैथिली कथा )

सुखिया नेनपनसँ अपनाकेँ बड्ड भागवंत बुझैत छल। नेनपनमे जखन अपन संगी सब संगे ओ चोर पुलिस खेलाइत छल तँ एद बेद छूरी छेद वाला छोट कविता में "बन्दूक" शब्द आबैत आबैत कहियो बजनिहारकेँ अंगुरी ओकरा ऊपर नै आबैत छलै आ कहियो ओकरा पुलिस बनैकेँ जरूरते नै पड़लै। ओकरा छोड़ि ओकर सब दोस्त कहियो ने कहियो पुलिस जरूर बनलै मुदा सुखिया सदिखन चोर बनि नुकाइत रहल। धीरे धीरे सुखिया लेल ई दस टा शब्द भागवंत हेबाक अमोघ बाण बनि गेलै। ओकर पूरा नेनपन ऐ दस शब्दक बनल पंक्तिक एम्हर ओम्हर घुमैत रहलै।
एद बेद, छूरी छेद , लक्कड़ धूम, आधा तुम , बम बन्दूक।
सुखिया आ ओकर पांच टा आर भाय जन्मजात दरिद्र छल। पढ़नाई लिखनाईसँ तँ कहियो भेंट तक नै भेलै आ छोट-छीन काज करैत करैत अन्तोगत्वा सब भैय्यारी गामसँ बाजार धरि रिक्शा चलाबए लागल। सुखिया आ ओकर छोट पैघ भाय सब बापक बनाओल एक्के कमराक घरमे रहैत छल आ केकरो बिआह नै भेल छलै। स्वभावसँ सब भाय कोंढ़ि छल मुदा मजबूरीमे रिक्सा चला कए जीवन यापन करैत छल।सब दिन साँझमे दिन भरिक मेहनतक बाद जखन सुखिया ताड़ी पीबै लेल पासी टोल जाएत रहै तँ एद बेद, छूरी छेद क’ कए तै करैत छल जे आई कोन दोकानसँ ताड़ी पीयल जाय। आ संजोग देखियौ जे ओ जै दोकान में जा क’ ताड़ी पिबै, ओकरा ओही दोकानक ताड़ीक सुआद आ नशा ओई दिन उत्तम लगैत छल। दिनों दिन सुखियाकेँ अपना भागवंत होइपर आ ओ दस शब्दक तिलिस्मपर बेसी बिस्वास हुए लगलै।
ऐ साल गर्मी जबरदस्त भेलै आ सुखियाक टिनक छत वाला रूम बड्ड गरम भ’ जाइत छलै। मोहल्लाक बड़ बुजुर्ग कहैत छलखिन जे ऐ बेर पानि सेहो खूब पड़तै। पांचो भायकेँ बुझल छलै जे टिनक छतक मरमत्ती बेस जरुरी छै नै तँ बीचे भादोमे छत खैसियो सकैत छै। एक दिन सबसँ पैघ भाय बेचन पांचो भायकेँ साँझमे बैसेलक आ ऐ मुद्दापर चर्चा शुरू केलक।
बेचन बाजल , "बाउ हौ। तोरा सबकेँ तँ बुझले छह जे अपना रूमक टिनही छत बड्ड पुरान छै आ जे ऐ बेर मरम्मत नै हेतै तँ खैसियो सकैत छै। हमरा बुझने एकर तुरंत मरम्मत हेबाक चाही। "
दुखिया जे सबसे छोट छल ओ तुरंत बाजल ,"भाय, हम तोहर गप मानैत छी; मुदा खर्चा कतेक हेतै ? हमरा लग एक्को टा पाई कौड़ी तँ जमा अछि नै। पहिने बता देबह तँ हम एखनेसँ जमा करय लागब। "
एक-एक क’ कए सब भाय अप्पन विचार देलक आ सम्मति रहै जे छतक मरम्मति तँ हेबाके चाही। मुदा सबहक जिज्ञासा खर्चाक बाबति छलै।
बेचन अप्पन जिनगी भरिक अनुभवक जोर पर बाजल ,"हमरा बुझने अगर हम सब काज ठेकेदारसँ कराबी तँ सब आदमीकेँ दू दू हज़ार रुपैया निकालय पड़तह।"
दू हज़ार रुपैया सब भाय लेल पैघ राशि छलै। दू हज़ार शब्दक बोझसँ कमरामे गुम्मी पसरि गेलै। कनी काल बाद बेचन फेर बाजल ,"नै तँ एकटा और भांज लगा सकैत छी। सब गोटा एक-एक हजारक बेवस्था करी टीनक चदरा कीनै लेल आ छत दुरुस्ती हम सब भाय मिल क’ अपने कए लेब। मेहनति अप्पन सबहक आ सामान बाजारसँ। "
ई जोगाड़ सबकेँ नीक लागलै। बेचनकेँ अपना बड्ड बुझनुक होइ पर गर्व महसूस भेलै। ओ आओर जोशमे आबि क’ बाजल, "अपना सब एकटा आर भांज लगा सकैत छी। तेसर तरीका ई भ’ सकैत अछि जे कोनो तीन भाय दू - दू हज़ार टका दए दौ आ बाकी क’ तीन भाय अप्पन मेहनति लगाबै।"
बुधन बाजल,"ओना तँ ई उपाय सेहो अधलाह नै मुदा ऐ बातक फैसला कोना हेतै जे के पाय देतै आ के मेहनत करतै।"
अपनाकेँ जबरदस्त भागवंत मानै वाला सुखियाकेँ तेसर उपाय सबसँ नीक लगलै। ओ तुरंत बाजल,"हौ भैय्या। तीन आदमी जे पैसा देताह ओकर फैसला एद बेदसँ फटाकसँ भ’ सकैत छै।” सुखियाकेँ पूरा विश्वास छलै जे एद बेदमे पाय दै लेल ओकर नंबर अएबे नै करतै। ओ पूर्ण वाक शक्तिसँ तेसर उपायक समर्थनमे एद बेद वाला तरीका अपनाबै लेल जोर देबए लागल।
कनिये झगड़ा झंझट , वाद प्रतिवाद और खूब घेंघाउजक बाद सुखियाक सुझाव मानि लेल गेलै। बगलमे रहै वाला बुजुर्ग सत्ते भाय केँ एद बेद करबा लेल बजाओल गेल। निर्धारित प्रक्रियाक अनुरूप, सत्ते भाय मुंह दोसर दिस केने ठाढ़ रहलाह आ छओ भाई बेचन , बुधन , करमा , सुखिया , भोला आ दुखिया बिना कोनो क्रममे पंक्ति बना ठाढ़ भ’ गेल। लाइन तैयार होइत देरी सत्ते भाय घुमलाह आ बिना सोचने विचारने एक भाय पर हाथक तर्जनी आँगुर राखि शुरू केलैन्हि।
एद बेद, छूरी छेद , लक्कड़ धूम, आधा तुम , बम बन्दूक।
पहिल बेरमे बुधन धराएल। बेचारा मोन मसोसि क’ कोनटामे ठाढ़ भ’ गेल। सुखिया मोने मोन खुश रहै। ओकरा अपना भागवंत हेबाक पूर्ण विश्वास छलै। दोसर भायक चुनबाक प्रक्रिया शुरू भेलै। फेरसँ सत्ते भय दोसर दिस मुंह क’ कए ठाढ़ भेला आ बाँचल पांच भाय बिना कोनो क्रमकेँ पाँतिमे ठाढ़ भेल। ऐ बेरक प्रक्रियामे भोला फँसल। ओकरो मुंह लटैक गेलै आ कोनटामे जा क’ ओ ठाढ़ भ’ गेल। सुखिया मोने मोन आह्लादित होइत छल। चुपेचाप मोनमे गीत गुनगुनाबय लागल। तेसर आ अंतिम बेरक प्रक्रिया शुरू भेलै। सत्ते भायक हाथ एक एक क’ कए शब्द संगे एक व्यक्तिसँ दोसर व्यक्ति दिस जाएत रहल जाबत धरि "बन्दूक" शब्द हुनकर मुंहमे नै एलै।
ले बलैय्या। ऐ बेर सत्ते भायक आँगुर तँ सुखिया पर रुकलै। सुखियाक विश्वास नै भेलै। ओकरा आंखिक सामने जेना पूरा अन्हार भ’ गेलै। मोन झूस भ’ गेलै, मोनमे चलैत गीत आधेमे रुकि गेलै। ओकर मोन ई मानै लेल तैयारे नै रहै जे ओहो ऐ फटोफंदमे फँसि सकैत अछि। मुदा ओ किछु नै बाजल, जे बाजितै तँ पांचो भायसँ मारि खएते। से ओ मुनिहारि साँझमे चुपचाप घरसँ बाहर निकलि अप्पन रिक्शा दिस विदा भेल। आब सुखिया अन्हारोमे रिक्शा चलाओत , एक महीनामे दू हज़ार टका जे आब जमा करबाक रहै। रिक्शा दिस जाइत जाइत सुखिया अपन मोनकेँ बहलावैत सोचैत रहै, " जाय दहि , गर्मीमे छत ठीक करबाक काजो तँ नै करय पड़त।"