Thursday, January 4, 2018


विश्वास
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मुसाफिरों के ऊपर से आज रास्ते चल दिए ?
समस्या बन के उभरे थे उन्होंने ऐसे हल दिए;
उँट को पीठ पर लाद तुम सरपट चलते रहे
नामुरादों के बोल ने जाने कैसे थे बल दिए!

दोपहर से पहले ही जैसे रवि ढल गया
सहेज के रखा हुआ कैसे छवि मचल गया;
परत दर परत कलई खुलती ही गयी
आग में हाथ डाला सो बस जल गया !

पांडव और कौरव तो बस पहचान है
दोनों तरफ एक ही सोच विद्यमान है ;
धन से बनती बिगड़ती है उनकी समझ
कल तुम अकड़े थे आज वो मचल गया !

चौंक कर तुम अपने को बहलाते हो अब
भौंक कर अपनी ही व्यथा गाते गजब ;
अपने सयाने होने का तुम्हें दम्भ था
डेढ़ सयाना तुम्हें आगे से छल गया !

उपले में छक कर देसी घी पिलाते रहे 
व्यर्थ में तुम वीर गाथा गुनगुनाते रहे 
औकात से फ़ाज़िल उम्मीद गटक क्यों लिए 
उदर ने करवट ली और जी मचल गया !

ये तेरा धर्म था और तेरा ही युद्ध था
आंदोलन तो बस स्वघोषित शुद्ध था
सड़को पर फेंके गर्म शब्द फांकते रहे
क्या हुआ जो जरा सा मुंह जल गया !

                     श्याम प्रकाश  झा


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