Friday, October 26, 2012

नेताजी की उधेड़बुन - एक लघु कथा

नेताजी परेशान  हैं। दो दिन से ठीक से खाया पिया और सोया नहीं। दरअसल हुआ यह कि नेताजी ने अपने दूध वाले के नाम से एक फर्जी कंपनी खोल रखी थी और उस कंपनी को अपने पैसे से कागजी कर्ज देते थे। फिर वही कंपनी उनके द्वारा चलायी जा रही एक दूसरे कंपनी को कागजी कर्ज देती थी। इस तरह से उन्होंने एक अच्छा खासा ब्लैक होल बना लिया था जिसमे जितना भी पैसा डालो वह निगल जाता था। सबकुछ ठीक था और ये  गोलमाल बहुत से लोगों और दूसरे नेताओं को पता भी था मगर कभी कोई कुछ बोलता नहीं था। आहे बगाहे वो भी नेताजी की इस शातिर व्यवस्था का जरुरत पड़ने पर फायदा उठा लिया करते थे। अचानक से एक पगला खिचड़ीबाल क्या आ गया और उसने प्याज के छिलकों की तरह परत दर परत उधेड़नी शुरू कर दी। सारे टीवी चैनल वाले भी टीआरपी के चक्कर में नेताजी और उनके इस नए ब्लैक होल कांड के ही पीछे पड़ गए।

नेताजी सोचते सोचते थक गए "अरे मैंने क्या बिगाड़ा है? एक बड़े नेत्री के दामाद ने क्या कुछ गड़बड़झाला नहीं किया मगर उसे तो कोई कुछ बोलता नहीं है। बंदा रात में भी काला चश्मा पहन के इत्मिनान से देश विदेश की सैर कर रहा है। लोगों को "मैंगो" और देश को "बनाना" बता रहा है। इतना ही नहीं, पड़ोस की पार्टी के मेरे परम  मित्र और बड़े नेताजी के खानदान  के नाम तो पूरे भारत वर्ष की करीब-करीब सारी जमीन, इमारते, नदियाँ, नहरे प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से होगी। सुना अब वो लोग लाल किले को अपने नाम करवाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। किसी ने कुछ कहा? मेरे इस अदने से कृत्य के पीछे सारे औने पौने लोग पड़े हैं। अरे वाह जी ......, तुम करो तो CC (कोड ऑफ़ कंडक्ट) और हम करे तो MC(????) ?"

आज तो सुबह से चाय तक नहीं पी नेताजी ने। दूधवाले ने दो दिन से दूध बंद कर रखा है। नेताजी को पाउडर वाली और टेट्रा पैक वाली दूध की चाय पसंद नहीं और आधे से ज्यादा पैकेट वाली दूध की कंपनियां तो उनकी ही है और उनको पता है की वहां किस तरह की दूध बना के बेची जाती है।

दूधवाले की परेशानी अलग है। वो कहता है, मेरे नाम से और मेरे तबेले के पते से आपने कंपनी खोली, कोई बात नहीं मगर मुझे दूध की मलाई नहीं तो कम से कम बर्तन से चिपक कर जलने वाला दूध/मलाई का भाग ही दे दिया होता। ये आम लोगों को भी आम खाने की आदत लग गयी है। उनको पता ही नहीं की "जो लेता है वो नेता है! जो देती है वो जनता है!" अब किसको किसको आम खानी और खिलानी है ये तो कोई स्पष्ट बता दे नेताजी को। सारी प्रॉब्लम वहीँ से शुरू होती है। सरकार  को ये खाने खिलाने का काम स्ट्रक्चर्ड करना चाहिए और रूल्स बनाने चाहिए नहीं तो कोई भी ऐरा गैरा  नत्थू खैरा आके बोलता है "मेहनतकश इस दुनिया में हम अपना हिस्सा मांगेंगे, एक बाग़  नहीं एक खेत नहीं हम सारी दुनिया मांगेंगे .............."

चलो कोई नहीं कल से सारी फ़ोन लाइन्स बंद कर रखी  है और सारे न्यूज़ चैनल्स बंद। कौन मुंह लगे इन छिछोरों से। कहीं कुछ उल्टा सीधा मुंह से निकल गया तो और हंगामा अलग।

सोचते सोचते आँख लगी ही थी की एक लठैत चमचा अपना मोबाइल लहराते आया "नेताजी ........अरे उठिए नेताजी ! देखिए  सताधारी दल के वाचाल, अकर्मण्य, बृहदमुखी घिग्गी बाबा का फ़ोन आया है। लगता है अब आपके सारे दुःख जल्द ही दूर होने वाले हैं। उठिए और बात कीजिये घिग्गी बाबा से और कोई रास्ता निकालिए। कब तक अपने साथ हमारा भी आना जाना बंद करके रखियेगा। घिग्गी बाबा बहुत ही घाघ किस्म के इंसान हैं और उनके पास  किसी भी समस्या का निदान है।"

नेताजी ने मोबाइल अपने कान से लगाया और रो पड़े। उनका ज्यादा गुस्सा आम आदमी और रिपोर्टरों पर ही है ऐसा उनके वार्तालाप से ज्ञात होता है।

"घिग्गी बाबा, ये भी कोई तरीका है क्या मेरे जैसे राष्ट्रीय नेता से व्यवहार करने का? पूरा देश आजकल मेरे पीछे पड़ गया है। क्या आम ..... क्या खास?"

घिग्गी बाबा  उवाच "आपने भी तो गलती किया। पहले तो किसी के ऊपर भी आप लांछन लगाते रहे। जब-तब आपके मुंह से हमारे डपोड़शंख मंत्री प्रमुख और हाइकमान के बारे में अपशब्द निकलते रहे हैं। आपने उनके बाल बच्चों तक को नहीं छोड़ा है। आपने शायद वक़्त फिल्म का वो डायलॉग नहीं सुना है की जिनके खुद के घर शीशे के होते हैं वो दूसरों पे पत्थर नहीं फेंकते हैं। अब अपनी जली तो पता चला की कैसी होती है खलबली? रिपोर्टरों को कुछ देना दिलाना था और न्यूज़ सप्रेस करवाना था जैसे बाकी इश्यूज में होता है"

नेताजी उवाच "अरे बाबा ऐसा नहीं है। उसी दिन रात वाली पार्टी में आपके सामने ही, जब मेरा अशोभनीय चित्र "मिस मजबूरी" के साथ एक रिपोर्टर ने ले लिया था तो वो न्यूज़ नहीं छापने  के लिए क्या मैंने उसे पैसे नहीं दिए? इतना कंजूस भी नहीं हूँ मैं। इसबार सारा प्रॉब्लम उस खिचड़ीबाल के कारन हुआ है। बंदा कम्प्रोमाइज को ही तैयार नहीं है। इधर कुछ दिनों से आम आदमियों की हिम्मत भी बहुत ज्यादा बढ़ गयी है। साले आसानी से पीछा ही नहीं छोड़ते। मेरे दूध वाले को देखो। उसके नाम पर एक नकली कंपनी मैंने खोल रखी है ये पता चलते ही उसने दूध देना छोड़ दिया। बोलता है मेरा हिस्सा दो ............ वो भी सूद के साथ। "

घिग्गी बाबा ठठा के हंस पड़े।

 नेताजी उवाच "कोई रास्ता तो बताओ घिग्गी बाबा? मेरी इस हालत का ऐसे तो मजाक न उड़ाओ।"

घिग्गी बाबा  उवाच "अब तो बस कहीं खोपचे में दुबके रहो और इस समस्या से उबरने के दो ही रास्ते हैं। पहला ये की भगवान से मनाओ की कोई और बड़ा सनसनीखेज इश्यू जनता या मीडिया के हाथ आ जाये या फिर पाकिस्तान या ISI ही कोई अच्छा खासा बम विस्फोट किसी बड़े शहर में करवा डाले। दूसरा उपाय ये है की कैसे भी दिन बिताते जाओ। अपने यहाँ थोड़े अरसे के बाद, लोग कोई सी भी चीज़ भूल जाते हैं। तुम्हारा स्कैंडल कौन सी खेत की मूली है? इतिहास गवाह है की हमलोगों ने वक़्त के साथ कैसे-कैसे कुकर्मो को भुला दिया है। दस पंद्रह दिन में सब कुछ अपने आप शांत हो जायेगा। बस भगवान का नाम लो और समय बिताओ। और हाँ एकबार बच  गए तो अपनी जबान जरा संभाल के चलाओ। हमारी पार्टी का  वैल्यू है कि  हम किसी भी नेता के पर्सनल चीज़ों पर या फॅमिली पर कोई टिप्पणी नहीं करते वरना हमारे पास भी अच्छा खासा इनफार्मेशन होता है।"

नेताजी सहमत हुए और दुआ सलाम के बाद मोबाइल वार्तालाप समाप्त हुआ। नेताजी उत्साहित लग रहे थे। उनकी आँख में चमक दृष्टिगोचर हुयी।  बस थोड़े दिन की बात है। कैसे भी आगे के बीस - तीस  दिन निकल जाये। लठैत चमचा भी उत्साहित हुआ। जोश में बोला "मालिक, कहीं कोई साइंटिस्ट को पैसा खिला के 24 घंटे के दिन को 12 घंटे का नहीं बना सकते ताकि ये दिन जल्दी से कट जाये? या फिर भगवान् को ही कुछ खिला पिला के ये पूरा महिना ही कैलेंडर से गोल करवा दे तो ..... !"

नेताजी मंद-मंद मुस्कुराने लगे और बोले कि चलो कोई बात नहीं आज पावडर वाली चाय ही पी लेते हैं ......... !




4 comments:

Aditya said...

"जो लेता है वो नेता है! जो देती है वो जनता है!"...

Aditya said...

"जो लेता है वो नेता है! जो देती है वो जनता है!"...

Hindi mai bahut dino ke bad kuch pada...kuch apani mitti ki khushubu ki yaad dila gaya...

Aditya said...

"जो लेता है वो नेता है! जो देती है वो जनता है!"...

Bahut dino ke bad kuch aaisa pada ...kuch kuch apani mitti ki yaad dila gaya...

Aditya said...

"जो लेता है वो नेता है! जो देती है वो जनता है!"...

Bahut dino ke bad kuch aaisa pada ...kuch kuch apani mitti ki yaad dila gaya...