Friday, March 26, 2010

हर सुबह

किरने रश्मि की स्पर्श करती हैं
हर सुबह
उड़ेल कर भर कटोरी रंग सिन्दूरी
आकाश में ;

अंक में माँ के लेटा शिशु चहका
आँखों में थी
रात भर के संसर्ग की सम्मोहिनी शक्ति
और
मुंह था जिगर के पास में;

बूँद बूँद टपका दूध
लपक लेता है वो
माँ के जिगर से
और दिख ही जाती है संतुष्टि
उसके प्यास में;

हर शिशु न श्याम जैसा
न हर माता है यशोदा
पर यही संबंध
दिखता है उन सबों को
जो हैं वात्सल्य के तलाश में !

-- श्याम प्रकाश झा (सालों पहले की रचना)

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