(Sharing this poem I read long back in my text book. Not sure but I think its written by Gopal Das Neeraj)
रोने वाला ही गाता है
मधु-विष हैं दोनों जीवन में
दोनों मिलते जीवन क्रम में
पर विष पाने पर पहले
मधु मूल्य अरे कुछ बढ़ जाता है
रोने वाला ही गाता है
प्राणों की वर्तिका बनाकर
ओढ़ तिमिर की काली चादर
जलने वाला दीपक ही तो
जग का तिमिर मिटा पाता है
रोने वाला ही गाता है
अरे प्रकृति का यही नियम है
रोदन के पीछे गायन है
पहले रोया करता है नभ
फिर पीछे इन्द्र-धनुष छाता है
रोने वाला ही गाता है
रोने वाला ही गाता है
मधु-विष हैं दोनों जीवन में
दोनों मिलते जीवन क्रम में
पर विष पाने पर पहले
मधु मूल्य अरे कुछ बढ़ जाता है
रोने वाला ही गाता है
प्राणों की वर्तिका बनाकर
ओढ़ तिमिर की काली चादर
जलने वाला दीपक ही तो
जग का तिमिर मिटा पाता है
रोने वाला ही गाता है
अरे प्रकृति का यही नियम है
रोदन के पीछे गायन है
पहले रोया करता है नभ
फिर पीछे इन्द्र-धनुष छाता है
रोने वाला ही गाता है
2 comments:
ये बच्चन ने नहीं, गोपालदास नीरज ने लिखा है।
thanks Vivek. My bad. Just corrected that
Post a Comment