अस्ताचलगामी सूर्य को
कौन करता है नमन ?
हार कर जाता है वो
रात भर सागर के शरण
वहां जल में जल कर
न जाने क्या तेज पाता?
होते ही प्रभात
हर नर - नारी
उसको सर नवाता !
My thoughts are my own. It may be interesting for you or it may not interest you at all. In any case, please provide your comments.
Monday, February 6, 2012
Friday, February 3, 2012
रोने वाला ही गाता है
(Sharing this poem I read long back in my text book. Not sure but I think its written by Gopal Das Neeraj)
रोने वाला ही गाता है
मधु-विष हैं दोनों जीवन में
दोनों मिलते जीवन क्रम में
पर विष पाने पर पहले
मधु मूल्य अरे कुछ बढ़ जाता है
रोने वाला ही गाता है
प्राणों की वर्तिका बनाकर
ओढ़ तिमिर की काली चादर
जलने वाला दीपक ही तो
जग का तिमिर मिटा पाता है
रोने वाला ही गाता है
अरे प्रकृति का यही नियम है
रोदन के पीछे गायन है
पहले रोया करता है नभ
फिर पीछे इन्द्र-धनुष छाता है
रोने वाला ही गाता है
रोने वाला ही गाता है
मधु-विष हैं दोनों जीवन में
दोनों मिलते जीवन क्रम में
पर विष पाने पर पहले
मधु मूल्य अरे कुछ बढ़ जाता है
रोने वाला ही गाता है
प्राणों की वर्तिका बनाकर
ओढ़ तिमिर की काली चादर
जलने वाला दीपक ही तो
जग का तिमिर मिटा पाता है
रोने वाला ही गाता है
अरे प्रकृति का यही नियम है
रोदन के पीछे गायन है
पहले रोया करता है नभ
फिर पीछे इन्द्र-धनुष छाता है
रोने वाला ही गाता है
Subscribe to:
Posts (Atom)