मुट्ठी भर
बिखरी हुई ज्योति
बिखेरा था जिसे
सैकड़ों दियों ने,
पुरजोर कोशिश कर
चुल्लू भर तेल के सहारे;
वही ज्योति शनै: शनै:
हुई लुप्त
घटता गया शौर्य उन दीयों का
और सर्वत्र व्याप्त हुआ
घुप्प अन्धेरा !
सुबह पांव फटने से पहले
फट गयी छाती उसी अँधेरे की
छिटकने लगी सूर्य की किरणे
यत्र तत्र सर्वत्र
हुआ लोप अकस्मात्
कुहनियों के बल रेंगता अँधेरा ;
सैकड़ों दीप नहीं
एक और बस एक
शक्ति पुंज
शौर्य प्रतीक
सूर्य को लालायित संपूर्ण विश्व ...... !
--- श्याम प्रकाश झा
1 comment:
I think this is one of the most important information for me. And i am glad reading your article. But should remark on few general things, The website style is perfect, the articles is really nice
Post a Comment