दिखा नहीं ज़माने को पर
तुम भी जरुर रोई होगी !
चाहा मैंने जितना मन को
पर दिया न तूने मुझे सहारा ;
जीत की खुशफहमी में ही
सब कुछ आज मैंने हारा !
हार मेरी ये तेरी भी है
यही सोच न सोई होगी,
दिखा नहीं ज़माने को पर
तुम भी जरुर रोई होगी !
मेरा गिरना ऐसा न था की
गिर के फिर मैं संभल न पाता;
हाथ दिए थे सबने मुझको
फिर हाथ तेरा क्यों मिल न पता !
खोया नहीं किसी ने कुछ भी
तुमने जरूर खोई होगी ,
दिखा नहीं ज़माने को पर
तुम भी जरुर रोई होगी !
टूटा नहीं जब मैं कभी था
नहीं कभी खुदको मुझमे देखा ;
आज टूटकर हज़ार हुआ हूँ
क्या करोगी अब भी अनदेखा ?
देख झांककर मुझे अभी भी
हर तुकडे में तुम्ही पिरोई होगी ,
दिखा नहीं ज़माने को पर
तुम भी जरुर रोई होगी !