हुनकर असली नाम चंद्रकला छलय मुदा बाप दुलार स मून दाय कहय छलखिन्ह। मून दाय के बाप मास्टर साहब जयराम मिसिर दू भाय के भैय्यारी में पैघ छलाह आ मून दाय परिवारक पहिल धी; से जहिना बाप के ओ दुलारू बेटी छलीह , ओहिना पित्ती जयधाम मिसिर सेहो भतीजी के बड्ड मानय छलखिन्ह। मून दाय जखन दू सालक अवस्था में प्रवेश केलैन्हि, छोटका भाय के जनम भेलय। पीठ पर भाय के जनम के बाद पूरा परिवार मून दाय के भागवंत घोषित कय देलकय आ हुनकर दुलरपइन में और हिजाफा भय गेलय।
बाल्यावस्था में मून दाय एकबेर बाप माय संगे एकटा छोट छिन्ह मेला देखय लेल गेलीह आ ओतय हुनका एकटा खिलौना के दोकान पर मुंह चिढाबय वाला नटुआ बड्ड पसिन्न पड़लैन्हि। नटुआ ओना ठीक ठाक खिलौना रहय मुदा जयराम बाबू के किया नय किया ओकर मुंह चिढ़बैत बनावट नीक नय लगलय से ओ बेटी के पोल्हाबय लगलाह जे कोनो और खिलौना किन ले। मून दाय के वैह नटुआ चाही छलैन्हि से ओ पहिने बालरोदन के सहारा लइत भोकाइर पारि कानय लगलीह आ बाद में ओहिठाम दोकानक सामने जमीन पर ओंघरा के देह पटकय लगली। बाप जाबे नटुआ किन के हाथ में नय धय देलखिन, मून दाय के देह पटकनाय चालू रहलय।खैर साँझ में बापक कोरा में मून आ मूनक कोरा में खिलौना संगे परिवार घर घुरि एलय। ओहि दिन से दिन-राति ओ नटुआ आब मून दाय के कोरा में रहैत छल। मून दाय ओहि खिलौना से भरि दिन खेलाइत रहैत छलीह आ नटुआ जेना मुंह बना बना के लोग सब के चिढेनय सेहो शुरू कय देलखिन्ह ।
बाल्यावस्था से कोमलावस्था में अबैत-अबैत मून दाय में एकटा विचित्र आदैत के प्रवेश भय गेलय। ओ पैघ छोट केकरो मुंहे लागल बिना सोचने बुझने जवाब देबय लगलीह आ लोग सब के मजाक उड़ाबय में आनंद प्राप्त करय लगलीह। जे कोनो मौका भेटय त मुंह चिढ़ा दैत छलखिन आकि मुंह सेहो दुइस दैत छलखिन। धीरे-धीरे पूरा इलाका में मून दाय दुलरबताह आ अगिलकंठ के रूप में प्रसिद्ध भय गेलीह। माय कहियो कहियो तमसा के कहि दैत छलखिन जे बुच्ची अही सब ख़राब आदैत के कारण हमरा तोहर ससुर में बास भेनाय मोसकिल लागैत अछि मुदा बाप लेल मून दाय के आदैत नेनपन से बेसी किच्छो नय छलय। जयराम बाबू निश्चिन्त छलाह जे पैघ होइत होइत मून दाय के आदति सब सुधरि जेतय।
मून दाय के माय बाप के बड्ड सेहन्ता रहय जे एकटा आउर संतानक प्राप्ति होयतैन्हि मुदा महादेव के कतेको जल चढबय के बाबजूद हुनका सब के लम्बा टाइम इंतज़ार कर' पड़लैन्हि। महादेव प्रसन्न भेलखिन मुदा तखन जखन मून दाय बारह बरख के छलीह आ छोटका भाय दस बरखक। एकटा बेटी के आउर प्राप्ति होइत देरी जयराम बाबू आ हुनकर कनिया दूनू प्राणी बड्ड प्रसन्न भेलाह आ देवघर जाय के बाबा के दरबार में हाजिरी देलखिन। कनिये दिन में मून दाय के माय अपन नैहरा आ सासुर में स्वजन सबके सामने खुश भय के घोषित कय देलखिन जे मून जखन सासुर जायत त हमरा सहारा हमर यैह बेटी बनत। छोटकी बेटी के नाम राखल गेलय जयंती आ जे जन्म मास जून रहय त मास्टर साहब ओकरा दुलार सँ जून दाय कहि के सोर पारय लगलाह। मून दाय सेहो जयंती के आगमन सँ बड्ड खुश रहैथ आ दिन भरि छोट जन्मौती बहिन के सेवा में माय संगे लागि गेलीह। जहन जयंती कनिये छेटगर भेलीह , दिन भरि मून दय ओकरे खाय पियय , कपडा - लत्ता , नहेने धोअने के बियौंत में लागल रहैत छलीह आ जतय जाय छलीह , जयंती कोरे में रहैत छलय।
अहि बीच में छोट भाय जयधाम मिसिर के टाटानगर में एकटा नीक नौकरी भेट गेलै आ हुनकर ब्याह सेहो संपन्न भय गेलय। ब्याह के बाद जयधाम अपन पत्नी संग टाटानगर में रहय लगलाह। कालांतर में हुनका एकटा बेटा भेलैन्हि आ जखन जयधाम के पुत्र मूरनक योग्य भेलय , मून दाय तेरह - चौदह साल के छलीह आ माय बाप संगे मूरन देखय लेल टाटानगर गेलीह। ओहि दौरान एकदिन पित्तीयाइन मूरनक उपलक्ष में बच्चा लेल अपन नैहर से आयल कपडा-लत्ता, गहना-गुड़िया, मर - मिठाई सब के जोश सहित पूरा परिवार समक्ष प्रदर्शन करय लगलीह त जयंती के कोरा में लेनेह समानक अवलोकन करैत मून दाय के भारक समान कम बुझेलय। ओ कहलखिन , "काकी, भार त ओना ठीके - ठाक छय मुदा नानाजी कनिये कँजूसी कय देलखिन। हमरा सब लेल कपडा लत्ता कतय छय ? जौं घरबैया सब लेल कपड़ा लत्ता नय त हमरा बुझना इ भार दरिद्राहा भार अछि। "
नैहर के खीद्दाँस सुनैत देरी पित्तीयाइन के तामस ऐडी से टिकासन धरि चढ़ि गेलय। मुदा ओ अपना के संतुलित करैत बजलीह,"बुच्ची एहेन बोल किया बजैत छी? उचितवक्ता बननाय नीक गप मुदा चुप रहनाय सेहो सीखू। चारि - छः साल में अहाँ केर ब्याह होयत। एना जे केकरो किच्छो कहबय त हम ने सुनि लेलहुँ , सासुर वाला नय सुनत। "
मून दाय केकरो सँ बात में बिना जीतने रहि नय सकैत छलीह। तुरत जवाब देलखिन "काकी हम कोनो अहाँ के कि कक्का के कमाइल खाइत छी जे अहाँ के कहला पर बाजब आ कि अहाँ के कहला पर चुप रहब ? हम अहाँ के बात किया मानब? जिनकर कमाइल खाइत छियन्हि ओ किछु कहतय नय छैथ, ....... अहाँ के छी हमरा किच्छो कहय वाला? "
एतेक कहैत देरी , मून दाय के माय बेटी के मुंह दाबने ओहिठाम से दोसर कोठली में घीच के लय गेलीह । एकसर में बेटी के बुझबय के कोशिश केलखिन्ह मुदा मून दाय हुनकर बात कतेक आत्मसात केलैन्हि से कहनाय आ बूझनाय मोसकिल गप रहय।
अहि घटना के बाद चारि साल तक मून दाय के पित्तीयाइन संगे गप्प बंद रहलय आ जखन मून दाय ब्याहक उपरांत सासुर जाइत छलीह, पित्तीयाइन पहिल बेर विदागरी के टाइम पर हुनका टोकलखिन।
नेहरा सॅ विदा होइत काल माय चौल्ह केलखिन "मून, सांठ में नटुआ वला खिलौना दय दियउ ?" मून कहलखिन," नय। अहिठाम रहय दही, जयंती खेलेतय ।" ब्याह के बाद शायद मून दाय के बुझेलय जे आब हुनकर अवस्था नटुआ वला खिलौना संगे खेलाय लायक नय रहि गेल छलय।आकि सासुर में कियो कनिया के हाथ में बच्चा वला खिलौना देख के हँसतय, से आशंका रहय। कारण कोनो रहउ , मून अपन खिलौना से सेहो विदा ओहि दिन लय लेलैन्हि। ओहि दिन मून के अपन खिलौना से बेसी माय - बाप , भाय - बहिन के संग छूटय के कारण कोढ फाटल जैत रहय।
मून दाय के विदागरी के बाद, माय मून दाय के सबसे पुरान आ नीक लगय वाला नटुआ के बेटी बला कोठली के दुछत्ती पर रखवा देलखिन। जून दाय पहिने कनि दिन बड़की बहिन के लेल जखन तखन खूब घाना पसारलैन्हि मुदा माय बाप के बुझाबय के परिणाम स्वरुप धीरे धीरे दू चारि मास में सामान्य भेलीह आ आब मूनक जगह जून दाय अपन माय के आगाँ पाँछा रहय लगलीह आ जहिना माय सोचने छलखिन ओहिना मायक जिंदगी में आयल खालीपन के भरि देलखिन।
मून दाय के सासुर प्रवास सामान्य ढंग से शुरू भेलय। मुदा कनिये दिन में आदति अनुसार हुनकर मुँह छुटय लगलैन्हि। सासुर में एकबेर जखन हुनकर मुंह सॅ साउस के मुंह लागल ओल सन बोल निकललय आ हुनका कमा के खुआबय बला घरवाला जीतेन्द्र ठाकुर कोनटा में ल' जा क' आंखि देखा के कहलखिन जे अहि तरह के वेवहार अहिठाम नय चलत त मून दाय सकपका गेलीह। आय तक नैहर में कियो एना सोझ गप कहि के दमसेने नय रहय। ओकर बाद सॅ मून दाय अपन मुँह पर जेना जाबी लगा लेलैन्हि आ कहियो सासुर में लक्ष्मण रेखा लांघय के कोसिस नय केलैन्हि।अय हिसाब से देखल जाउ त मून दाय अपन पितियाईंन के चारि बरख पूर्व सत्ते गप कहने छलखिन।
कालांतर में मून दाय अपन पतिदेव संग हुनकर नौकरी लेल रांची चलि गेलीह आ ओहिठाम अपन धिया पुता आ गृहस्थी में व्यस्त भय गेलीह। बीच बीच में नैहर आ सासुर एनाय जेनाय होइत रहलय।
रांची में मून दाय के अपेकता हुनकर मोहल्ला में रहय वाली समतुरिया बिंदू स भेलय जे हुनकर अपने नैहर दिस के छलीह। अपनत्व ततेक बढ़लै जे कनिये दिन में दुनू गोटा एक दूसरा के घर तरकारी तीमन लेनेह आ नय त ओहिना चाय पीबय लेल आ गप लड़बै लेल बेरमबेर आबय जाय लगलीह। बिंदु आ हुनकर पतिदेव अमर बाबू संगे छोटकी बहिन सेहो रांची डेरा पर रहय छलय जे मून दाय के देखय -सुनय , बाजय -भूकय में बड्ड पसिन्न परय छलय। बिंदु के सास ससुर आब दुनिया में नय छलाह आ ओ भविष्य में ननैदक ब्याह लेल चिंतित रहैत छलीह। जखने हुनका पता चललय जे मून दाय के छोटका भाय नीक पढय लिखय छय आ कनिये दिन में ओ ब्याहक योग्य भ ' जेतय ,बिंदु के वेवहार में मून दाय के परिवार लेल मिठास आउर बढ़ि गेलय। ओना मून दाय अपने मोने मोन सोचि के पहिने से बैसल छलीह जे जखन हुनकर छोट भाय के ब्याहक गप उखड़तय, ओ अपन पिताजी के आगाँ बढ़ि के ई कथा करबाक लेल मना लेथिन्ह किया त लड़की सुन्नर छय , सुशील छय , पढ़ल लिखल छय आ सबसे पैघ गप जे ओ हुनकर प्रिय सखी बिंदु के ननैद छय।
ग्रेजुएट होय के कनि दिन बाद , मून दाय के छोट भाय सूर्यकांत बैंक में क्लर्क पद लेल चयनित भेलाह आ पोस्टिंग सेहो अपने शहर दड़िभंगा में भय गेलय। नौकरी शुरू कय के ठीक से स्थापित होइत होइत साल भरि निकलि गेलय आ ओकर उपरांत , जयकांत बाबू पुत्र के ब्याहक मोन बनेलैन्ह। मूनक ब्याह के नौ सालक बाद घर में फेर से एकटा ब्याहक संजोग बनैत रहय। पूरा परिवार ब्याह लेल उत्साहित रहय आ मून दाय त ' जेना अहि मौका के तकैत छलीह। पहिने ओ सब बातक ब्यौरा आ प्रस्तावित सम्बन्ध लेल एकटा चिट्ठी पिताश्री के पठौलैन्हि आ बाद में टिकट कटा दरभंगा नैहर आबि के सम्बन्धक बात चैल देलखिन्ह। अमर बाबू सेहो ब्याहक प्रस्ताव लेने डेरा पर एलखिन्ह। अंततः जयराम बाबू के सुपुत्र सूर्यकांत मिसिर के ब्याह अमरकांत चौधरी के बहिन लता चौधरी से भेनाय तय भेलय। ब्याह गाम में भेनाय आ बाराती दरभंगा से विदा भेनाय निश्चित भेलय। चतुर्थी के परात द्विरागमन के गप सेहो सुनिश्चित भेलय।
मून दाय लेल इ ब्याह महत्वपूर्ण रहय। एक त' ब्याह हुनके पहल पर ठीक भेल रहय। ओ घराती छलीह आ एक तरह से बाराती सेहो छलीह । ब्याहक इंतज़ाम आ द्विरागमन के सांठ में की केना हेतै , सब बात में अमर बाबू आ बिंदु मून दाय से परामर्श केलखिन्ह । हुनकर मोनक सब बात के ध्यान राखल गेलय। सांठ में लड़का के बहिन होय के खातिर मून दाय लेल जे एक पल्ला साडी देल गेलय ओ कनि महग हेबाक चाही एकर ध्यान बिंदु जरूर रखलखिन्ह।
खैर ब्याह नीक जेना संपन्न भेलय। बाराती के स्वागत सत्कार में अमर बाबू नीक खर्चा केलैन्हि आ कोनो कमी नय हुबय देलखिन। बाराती वापिस आबय के बाद मून दाय के पतिदेव नौकरी के व्यस्तता खातिर रांची विदा भय गेलाह आ मून दाय द्विरागमन देख के कनिया के परिछन के बाद दू चारि दिन नैहर में रहि के एकसर रांची जेतीह से निश्चित भेल रहय। चतुर्थी के बाद द्विरागमनक विदागरी भेलै आ नवका वर कनिया संगे अमर बाबू बहिनक सासुर भार लेने साँझ तक पहुँचलाह।
दोसर दिन भोरे भोर सर-सम्बन्धी, समांग जे कियो द्विरागमन लेल रुकल छलाह, सबके सामने में कनिया के नैहर से आयल भार आ ओहि में सांठल सामान के दालान पर प्रदर्शनी भेलय। ओना भार परिपूर्ण रहय मुदा वर पक्ष दिस से होय के कारण, दियाद के लोक सब आ अपन सम्बन्धी सब किछु मीन मेख निकालता से सुनिश्चित छलय। अमर बाबू मीमांसा सुनय लेल मानसिक रूप से पहिने तय्यार बैसल छलाह। मून दाय विचित्र स्थिति में छलीह। एक दिस भाय के सासुर से आयल सामान छलय त' दोसर दिस येहो बात रहय जे सांठ के सब सामान हुनके सहमति से कनिया वाला (आ हुनकर सखि बिंदु ) सजौने छलखिन्ह। जखन वर पक्ष के लोग सब एक एक टा चीजक व्याख्या आओर की कमी रहय, से विस्तार में कहि के भर्त्सना करय लागलखिन्ह त' मून दाय कनि काल मुँह पर जाबी लगेने रहलीह ।
चौदह सालक जयंती सांठ में वरक माय - बाप आ बहिन लेल आयल सामान में बेसी ध्यान लगाउने छलीह। हुनका इ बात पसिन्न नय एलय जे बड़की बहिन लेल बढियमका साडी आयल छल मुदा हुनका आ हुनकर माय बाप लेल मोन मुताबिक कपडा नय आयल रहय। अहि बात सँ बिदकल जून दाय सांठ में बान्हल एक एक सामान के खीद्दाँस करय लगलीह। भीतर के तामस ततेक तीव्र भेलय की खीद्दाँस करैत करैत ओ कनिया के घर परिवार , सर सम्बन्धी , भाय - भौज सब के भर्त्सना करय लगलीह। अमर बाबू जेना बहिनक सासुर में गारि सुनय लेल तय्यार बैसल छलाह से निर्विवाक रहलाह, कोनो उद्विग्नता के बिना , मुदा मून दाय सँ आब चुप नय रहल गेलय। ओ छोट बहिन के कहलखिन "बुच्ची तू एना आगि अंगोरा धधकल जेना किया करैत छैंह ? उमरि के हिसाब सँ जतबे बुझय छीह ततबे बाजय के चाही। अखन तोहर अवस्था नय भेलउ अहि सब चीज़ में बाजय बला। जो भीतर कोठली में जो। "
जयंती के अपने डेरा पर , नव पाहुन के सामने एतेक गप सुननाय अनसोहाँत लगलय। ओ तमतमाइत कहलकय "दीदी, हम कोनो अहाँ के, कि ठाकुरजी के कमाइल खाइत छी जे अहाँ के कहला पर बाजब आ कि अहाँ के कहला पर चुप रहब ? हम अहाँ के बात किया मानब? जिनकर कमाइल खाइत छियन्हि ओ किछु कहतय नय छैथ , अहाँ के छी हमरा किच्छो कहय वाला। " एतेक बात कहय के बाद जयंती मुंह सेहो ऐंठ देलकय।
उमरि में बड्ड छोट बहिन के मुँह लागल जवाब सुनि के मून दाय अवाक् रहि गेलीह । हुनका जयंती के ई वेवहार अनसोहाँत लगलय आ आय अपना के ओ शक्तिविहीन महसूस करय लगलीह। नैतिक समर्थन लेल एकबेर ओ सोफा पर बैसल कक्का आ पिताजी दिस आंखि कनटिया के तकलैन्हि त देखलैन्हि जे दुनू गोटा मुंह चोरा रहल छलाह। अमर बाबू कुर्सी पर बैसल सकदम छलाह। मुंह में हुनकर जीभ सुखाइत रहैन। दर दियाद सब सेहो चुप रहनाय उचित बुझ्लैन्हि। मून दाय के माय ओहुना भीतर कोनो काज में ओझरायल छलय, ओ ओतय नय छलीह । कतउ से समर्थन में कोनो वक्तव्य नय सुनि , मून दाय आनन् फानन में नोरायल आँखि लेने अपन कोठली दिस परेली। झटपट में ब्रीफ़केस निकालि कपड़ा सरियाबय लगलीह । ओना उपर सँ चेहरा शांतचित रखय के कोशिश करय छलीह मुदा मोन में विचारक ज्वार भाटा उठल रहय। मोने मोन सोचलैन्हि जे आब कहियो अहि दरबज्जा पर नय आयब। मिनट भरि में मून दाय अपना घर रांची जाय लेल सामान बैन्हि तय्यार भेलीह। कोठली से बाहर होइत काल अनचोक्के नजरि कोठली के दूछत्ती पर गेलैन्हि। हुनकर ओ पुरना खिलौना मेला वाला नटुआ कतेको साल से ओहिठाम राखल रहय। ओना धूल गर्दा से ओत प्रोत रहय मुदा ओहिना दांत निकालि हसैत मुंह चिढ़ा रहल छलय ।मून दाय धरफड़ा के आंखि नीचा दरबज्जा दिस कय , आंखि पोछैत आ आँचर सरियाबैत हाथ में ब्रीफ़केस लेने कोठली सै बाहर दलान दिस सँ घरक दरबज्जा दिस निकलि गेलीह।