Tuesday, November 5, 2013

मिट्टी के पुतले

मिट्टी के पुतले
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मिट्टी के पुतले
रंग-रोगन किये
हरे, लाल, नीले
कुछ काले -उजले !

कुछ कच्चे-पक्के
कुछ हक्के-बक्के
कुछ अहर्निश मांगे
हक़ से, बक के;
कुछ अमृत पीते
भरसक छक के !

मिट्टी के पुतले…।

कुछ टेढ़े कुछ चिकने 
लगे हाथों हाथ बिकने 
समय के तंदूर पर 
झट से लगे सिकने ;
पल भर में उनके लगे 
असली रंग दिखने !

मिट्टी के पुतले…।  

कुछ अपनो से हारे
कुछ सपनो के सहारे
कुछ धरातल से ऊपर
फिरे मारे मारे ;
कुछ चित पर हैं काबिज
वो सबको निहारे !

मिट्टी के पुतले…।

कुछ रक्त से सने
कुछ वक़्त से ठने
कुछ सख्त हैं बने
कुछ त्यक्त, अनमने ;
कुछ अक्खड़ चबाते
बस लोहे के चने !

मिट्टी के पुतले…।

कुछ नम्र, कुछ ढीठ
कुछ दिखा रहे हैं पीठ
कुछ जुबान से पैदल
कुछ आजन्म बिना रीढ़;
कुछ बसे मधुशाला 
कुछ बसे धर्मपीठ !

मिट्टी के पुतले…।

कुछ भावो से रिसते
कुछ घावों से रिसते 
कुछ थोड़े में पाते ज्यादा
कुछ हर पल हैं घिसते ;
कुछ जन्म से हैं राजा
कुछ सदियों से पिसते!

मिट्टी के पुतले…।