Tuesday, April 27, 2010

आशा

संभल संभल के चल रहा
ये रोशनी का कारवां !

है स्याह रात का सफ़र
निशा का अंतिम प्रहर
खड़ी दनुजों की फौज है
गिरहकटों की मौज है

मगर उम्मीद की किरण
पर पल रहा ये नौजवान
संभल संभल के चल रहा
ये रोशनी का कारवां !

सफ़र जरूर है कठिन
प्राण भी पड़ती मलिन
जवाब दे रहा शरीर
देव बने हैं मूक-बधिर

बिना किसी वरदान के
मगर वो छू लेगा आसमां
संभल संभल के चल रहा
ये रौशनी का कारवां !

उसे पता वो जो नहीं चला
मौत क्या छोड़ेगी भला?
उस पार ही तो भोर है
आगे निकलने की होड़ है

अगर अभी रुका जो वो
ठौर भी मिलेगी कहाँ ?
संभल संभल के चल रहा
ये रौशनी का कारवां !